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________________ ©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®OG दशाएँ आत्मा की ..... अंतर आत्मदशा सुख माणवा माटे बहिरात्मा ने मूल थी पीछाणवो पडशे परम परमात्म पद ने पामवा माटे महात्मा नी अवस्था साधवी पडशे... अंतर आत्मदशा .... बहिरात्मा रहे आसक्त, पुद्गल ना प्रवाहो मां करे ए क्षुद्रता, रति लाभ मां, दीनता अलाभो मां भूल्यो तु मुर्ख थई, मत्सर बनी, भयमां ने शठतामां अवस्था मूढतानी तो हवे बस नाथवी पडशे .... अंतर आत्मदशा .... बहिरात्मा रहे लपटाई ने मोहांध संसारी रहे संसार मां, अंतर आत्मा, समकित आधारी त्यजी संसार साधु महात्मा, मनथी छे अणगारी दया मां हाथ आ ‘श्रद्धांध' नो बस झालवो पडशे... अंतर आत्मदशा .... "श्रद्धांध" अप्रैल 2005 प. पू. पं. श्री नयवर्धन विजयजी म.सा. लिखित 'आत्मा थी परमात्मा' पुस्तक के आधार पर प्रेरणा द्वारा लिखा गया ७०७७०७0000000000018509090050505050505050605060
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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