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________________ GG 19. सभिन्न श्रोत लब्धि :- इस शक्ति के द्वारा किसी भी इन्द्रिय से अन्य इन्द्रिय के विषयों को जाना जा सकता है। आंख सुनते हैं, जीभ से देखते हैं, अंगुली से सुनते हैं । (उववाई सूत्र ) 20. तंदुलिया मच्छ बार-बार 7वीं नरक का आयुष्य बांधता है, जीता-मरता है । (भगवती सूत्र : श. 28) 21. अनंत काल चक्र बीत गए । 1 काल चक्र में 20 करोड़ x 1 करोड़ सागरोपम । 1 सागर में 10 करोड़ x 1 करोड़ पल्योपम । 1 पल्योपम में असंख्य 3 खंड के वासुदेव नरक में चले जाते हैं । प्रत्येक पल्योपम में असंख्य साधु, चारित्र पाल कर प्रचंड पुण्य उपार्जन कर मोह और द्वेष के वश होकर विभाव में वासुदेव बनने का नियाणा कर बैठते हैं । स्वयं चल कर असंख्य काल के नरक के अनंत दुःखों को निमंत्रण देते हैं । (ठाणांग सूत्र) 22. जीव 5 मार्ग से शरीर में से बाहर निकलता है । 1. आत्मप्रदेश पांव में से निकले तो नरक में जाए 2. आत्मप्रदेश सीने (छाती) के नीचे से निकले तो तिर्यंच में जाए, 3. आत्मप्रदेश सीना (छाती) के भाग से निकले तो मनुष्य में जाए, 4. आत्मप्रदेश गले के ऊपर के भाग से निकले तो देवलोक में जाए। 5. आत्मप्रदेश पूरे शरीर में से निकले तो मोक्ष में जाता है । (ठाणांग सूत्र : स्था. 5) 23. अनुत्तर विमान की देव शय्या पर 'लवसप्तम' देव जिनके 7 लव का ही समय कम पड़ा हो - श्रमण रुप में यह समय मिला होता तो सर्व कर्म क्षय कर सकते थे । 7 लव : साढ़े 4 मिनिट । 7 लव का समय खो दिया (आयुष्य के कारण) भव बढ़ गया । (भगवती सूत्र, सूयगडांग सूत्र : अ. 6) 24. अनंतकाल तिर्यंच रुप में, असंख्य काल नरक में, देव रुप में भूतकाल में व्यतीत कर दिया । फिर वर्तमान का संख्यात काल मानव भव का मिला है । 'दुल्लहे खलुमाणुसे भवे' ‘मानव भव निश्चित रुप से दुर्लभ है ।' (भगवती सूत्र) 90446
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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