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________________ * आते कर्म को रोकना वह - संवर । * सम् - सम्यक् प्रकार से, उपयोग - यत्नपूर्वक । इति - गति चेष्टा । * गुप्यते - जिससे रक्षा होती है, संसार में डूबते प्राणी की रक्षा - वह गुप्ति । * सह - सहन करना । * परि - सभी तरफ से सम्यक् प्रकार से, उपसर्ग आए तो चलायमान नहीं होने देना । * यति धर्म - मोक्ष मार्ग में जो प्रयत्न करे वह यति, उसका धर्म वह यतिधर्म । * भावना - मोक्ष मार्ग के प्रति भावना की वृद्धि हो ऐसा चिंतन । * चय - आठ कर्मों का संचय, संग्रह । * रित्त - रिक्त (खाली), करे वह चारित्र । * सावद्य योग - दोष सहित का व्यापार । * निर्वद्य - दोष रहित का व्यापार । * समिति गुप्ति - सम्यक् प्रकार से उपयोगपूर्वक जो प्रवृत्ति होती है, वह समिति और सम्यक् प्रकार से उपयोगपूर्वक निवृत्ति तथा प्रवृत्ति हो वह गुप्ति । * मनोगुप्ति - सावद्य मार्ग के विचार में से रोकना एवं मन को सम्यक् विचारों में प्रवृत्त करना वह मनोगुप्ति । आर्तध्यान, रौद्रध्यान से रोकना । धर्मध्यान एवं शुक्ल ध्यान में प्रवृत्त करना, केवली भगवंत को मनोयोग का पूर्णत: निरोध होता है । वह योग निरोध रुप मनोगुप्ति उत्कृष्ट प्रकार है । * वचन गुप्ति - त्यागपूर्वक मौन, मुंहपत्ति रखकर बोलना । * भाषा समिति एवं वचन गुप्ति में अंतर : * वचन गुप्ति - पूर्ण रुप से वचन, निरोध एवं निरवद्य वचन बोलने रुप एक ही प्रकार की। भाषा समिति-निरवद्य, वचन बोलने रुप एक ही प्रकार की । कायगुप्ति - काया को सावद्य मार्ग से रोकना, निरवद्य क्रिया में जोड़ना एवं उपसर्ग आए तब चलायमान नहीं होने देना । 425
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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