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________________ ©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©® स्थितप्रज्ञ :- अनुकूलता और प्रतिकूलता में समभाव से रहना, यह पहले तत्व का निर्णय फिर तत्व का पक्षपात, यही सम्यग्दर्शन, पश्चात् हेय - उपादेय का सेवन । माध्यस्थ भाव :- राग-द्वेष रहित भाव। औदासिन्य :- राग-द्वेष रहित, माध्यस्थ भाव। औद्यदृष्टि :- परभाव दशा, पुदगल के सुख की अपेक्षा, अनन्त, जन्म मरण । योगदृष्टि :- स्वभाव दशा, गुणों के सुख की अपेक्षा, शैलशी अवस्था, मोक्ष । मिथ्यात्वी जीव :- मित्रा (तृण), तारा (गोयम), बला (काष्ठ), दीप्ता (दीप), दृष्टिवाला जीव। समकिती जीव :-5वीं दृष्टि-स्थिरादृष्टि, चौथा गुणस्थानसवाला जीव, भौतिक अनुकूलता :- घाती कर्मों का क्षयोपशम और शुभ अघाती कर्मों का उदय । भौतिक प्रतिकूलता :- घाती कर्मों का उदय एवं अघाती अशुभ कर्मों का उदय । * नव तत्व :-जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आश्रव, संवर, निर्जरा, बंध, मोक्ष । जैन दर्शन को समझने के लिए (संक्षिप्त रुप में) नव तत्व बहुत उपयोगी है । इन को समझने के बाद जीवन के उपयोगी योग्य मार्ग को समझाया जा सकता है । ये नव तत्व ही जगत के सत्य तत्व रूप हैं। जीवन के उत्कर्ष के लिए निश्चित रुप से ये मार्गदर्शक हैं। इस प्रकार नव तत्व दोनो गुणों को धारण करने वाले हैं। (1) जगत का स्वरुप (2) जीवन मार्ग । इसलिए इनको तत्व कहा गया है । नव तत्व अत्यन्त महत्व की वस्तु हैं । ऐसी स्पष्ट या अस्पष्ट समझ रुप श्रद्धा को सम्यक्त्व कहा है। सम्यक्त्व के स्पर्श के बाद जीव कर्तव्य की ओर उन्मुख होकर कुछ ही समय में मोक्ष सुख तक पहुँच जाता है। * संवर तत्व:- समइ गुप्ती परिसह, जई धम्मो भावणा चरित्ताणि । पण ति दवीस दस बार - पांच भेणहिं- सगवन्ना॥ जईधम्मो : यति धर्म, पण : 5 भेद, भेणहिं : इन भेदों के द्वारा, सगवन्ना : सत्तावन (भेद)। ७०७७०७000000000004249050905050505050505050605060
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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