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________________ GOOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOG@GOGOG@GOGOGOGOGOGOG पुणिया श्रावक का संवेग कितना तीव्र होगा। सुरनर सुख जे दुःख करी लेखवे, वंछे शिवसुख एक । यह पंक्ति पुणिया श्रावक के जीवन के अंग-अंग में रम गई थी। * अयोग्यता को दूर किए बिना योग्यता प्रगट नहीं होती। अनादिकाल का मिथ्यात्व एवं मिथ्यात्व की वासना प्राणी के दिल-दिमाग पर कब्जा जमाकर बैठी है। सिर्फ सुनने से काम नहीं चलता, सुने हुए को हृदय में उतारे तो ही काम का है। “सुणी-सुणी ने फूट्या कान, तो ईन आव्यो हृदये ज्ञान' । इस जन्म से पहले अनेक बार सुना होगा, अध्ययन भी किया होगा, अध्यापन भी किया होगा, आचार्यों एवं हो सकता है साक्षात् तीर्थंकरों के पावन मुख से भी सुना होगा । फिर भी मोह को नहीं पहचाना, मिथ्या मत को नहीं पहचाना । चित्त में भगवान को स्थापित ही नहीं किये। विवेक आदि दर्शनवाद की चर्चा श्री सूयगडांग सूत्र (सूत्र कृतांग सूत्र) * दर्शनवाद की चर्चा आत्मा बंधनों से कैसे बंधती है ? सूयगडांग सूत्र में दो श्रुत स्कंध हैं :1. 'गाथा षोडश' - 16 अध्ययन, कुल 26 उद्देशा है। 2. श्रुतस्कंध में 7 अध्ययन हैं, सुयगडांग सूत्र में मुख्य अधिकार द्रव्यानुयोग का बताया है। यह महान् आगम ग्रंथ सग्यगदर्शन की विशुद्धि करने वाला है। बुज्झिज्ज किट्टिज्जा बंधणं परिजाणिया । किमाह बंधणं वीरो किं वा जाणं किट्टई । सुधर्मास्वामी कहते हैं - ‘बोध को प्राप्त कर ! अपने चारों ओर के बंधन को समझ ! बंधन को तोड़ डाल। जंबुस्वामी कहते हैं - 'प्रभु महावीर ने बंधन किसको कहा है ? क्या जानकर इसको तोड़ा जा सकता है ?' सूयगडांग सूत्र के गंभीर अर्थ का प्रकाशन 14 पूर्वधर युगप्रधान पू. आ. भगवंत श्री भद्रबाहुसूरिजी के नियुक्ति ग्रंथ की रचना की और पू. आ. श्री शीलांकसूरिजी महाराज ने GOGOGOG©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®0 41350GO®©®©®©®©®©®©®©®©®©®OGOGO
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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