________________
GOOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGO®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®OGOGOGOGOGOG
दो मरण ऐसे हैं जिसकी भगवान महावीर ने हमेशा प्रशंसा की है और साधुओं को अनुमति भी दी है।
1. पादपोपगमन :-निर्हारिम / अनिर्हारिम 2. भक्त प्रत्याख्यान:-निर्दारिम / अनिर्हारिम । * चार अंत क्रिया कही हैं, ऐसा मरण जिससे पुन: जन्म-मरण रहे ही नहीं।
1. अल्प कर्मवाला जीव घर छोड़ संयम ग्रहण करे । संयम और समाधि की वृद्धि कर वह रुक्ष (रुखा) हो जाए । संसार से किनारा करने की इच्छा वाला उपधान करता है, दुःख को क्षय करे, तपस्वी हो किन्तु कठिन वेदना में नहीं पड़ता, दीर्घकाल के दीक्षा पर्याय के बाद सर्व दुःखों का अंत कर मोक्ष जाए।
दा. त. भरत चक्रवर्ती :- पूर्व भव में हलुकर्मी सर्व सिद्धार्थ में थे, आरीसा (कांच) भवन में वैराग्य, गृहस्थावस्था में केवलज्ञान, फिर दीक्षा लेकर पूर्व लाख वर्ष तक संयम पालकर मोक्ष गए।
2. जीव बहुत कर्मों को साथ लेकर मनुष्य भव में आया हो एवं फिर घर छोड़ दीक्षा लेकर तपस्वी बन जाए, तीव्र तपस्या कर तीव्र वेदना सहे कुछ ही समय में सर्व कर्म क्षय करे, दा.त. गजसुकुमाल।
3. उपरोक्त प्रमाणानुसार ही सामग्री - दीर्घकाल तक दुःखों का अंत करने में समय निकालें - दा.त. सनतकुमार चक्रवर्ती (चौथे चक्रवर्ती) थे। महातपस्वीथे।
4. अल्प कर्म वाले जीव हो, दीक्षा लेकर दीर्घ तपस्या भी न करे, वेदना भी न सहे, फिर भी अल्प समय में सर्व दुःखों का अंत कर मोक्ष जाए। दा.त. मरुदेवी माता।
* कर्म का समूल विनाश किस प्रकार होता है ? विवेक द्वारा कर्म का उच्छेद हो सकता है। * असत्य को असत्य रूप में और सत्य को सत्य रूप में जानना वह ज्ञान विवेक ।
* असत्य को असत्य रूप में मानना, सत्य को सत्य रूप में माना और जीवन में उसी प्रकार अपनाने का उतावलापन वह दर्शन विवेक।
5050505050505050505050500040900900505050505050090050