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मानव से महामानव (तीर्थंकर प्रभु) कैसे बनते हैं ?
महावीर का संदेश - शाश्वत वाणी ......
समस्त प्राणियों को अपना जीवन प्यारा है इस हेतु सूक्ष्मातिसूक्ष्म से लेकर लघु बृहद चेतनावंत किसी भी जीव की हत्या ना ही करना चाहिए ना ही करवाना चाहिए । इसका यथार्थ रूपेण पालन हो सके इसके लिए सत्य, अहिंसा, अचौर्य, ब्रह्मचर्य एवं अपरिग्रह इन पांचों आदेशों को आचरण में लाना चाहिए ।
शास्त्रोक्त वचन के आधार पर जीवन विकास की गति
मानव से महामानव बनने वाली आत्मा
तीर्थंकर परमात्मा रूप किस प्रकार बनती हैं ?
• अखिल विश्व के प्राणी मात्र में से अनेक आत्माएँ विशिष्ट कोटि की होती हैं, जो ईश्वरीय स्थिति तक पहुँचने की योग्यता रखती हैं ।
o जड़ या चेतन का निमित्त मिलते, मनुष्य भव हो तब इस विशिष्ट आत्मा की विकास की गति बहुत ही शीघ्र होती है ।
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• एक ही जन्म में मैत्री भावना पराकाष्ठा पर पहुँचती है । उनकी आत्मा में सागर से भी विशाल मैत्री भाव का जन्म होता है । विश्व के समग्र आत्माओं को स्व-आत्मतुल्य समझती है । एक उत्कृष्ट भाव जागृत होता है कि इस आत्माओं को दुःख मुक्त करने के लिए मैं शक्तिमान बनूँ ? NIAGARA के प्रवाह से भी अनेक गुना अधिक एवं वायु से भी अधिक वेगवान भावना का महास्त्रोत परमात्म दशा को प्राप्त कर सके इसी स्थिति का निर्माण करता है । ऐसी स्थिति के निर्माण होने का जन्म यह परमात्मा बनने वाले भव पहले का तीसरा भव होता है
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