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________________ 1. अधर्मानुगा :- अधर्म्य खान-पान, रहन-सहन एवं भाषा व्यवहार में तत्पर । 2. अधार्मिक :- सम्यक् श्रुत और सम्यक् चारित्र रहित । 3. अधर्मेष्ठा :- सम्यक् श्रुत और सम्यक् चारित्र के प्रति श्रद्धा रहित, धार्मिक के प्रति तथा उनके सद्अनुष्ठानों में उपेक्षा भाव रखने वाले । 4. अधर्माख्यायी :- धर्म एवं धर्म प्रसंगों को विकृत कर पाप भाषा बोलने वाले । 5. अधर्मप्रलोकी :- धार्मिक व्यवहार का अपलाप कर, हिंसा -असत्य - चोरी - मैथुन एवं अपरिग्रह रूप अधर्म को ही धर्म मानने वाले । १९ 6. अधर्मरागी :- देव-गुरु-धर्म के प्रति राग का दिवाला निकालकर, प्रपंची, खुशामदी और वाचाल मनुष्यों को चाहने वाला । 7. अधर्मसमुद्दाचारी :- अधर्म, आचार-1 र-विचार में ही जीवन पूरा करने वाला । 8. अधर्मजीविका :- भयंकर पाप - बंध हो ऐसा व्यापार-व्यवहार करने वाला । जिसके सिर पर सदा शत्रुओं का साया रहता है, वे जीव भावांतर में महादुःखी ऐसे जीव सुप्त ही रहें तो वे बहुत से पापों से बच जाऐंगे; अन्य जीव उसके हिंसा स्वभाव से वंचित रह सकते हैं । इसके विपरित जो भाग्यशाली धर्म में रक्त, धार्मिक वातावरण उत्पन्न हो ऐसी भाषा का प्रयोग करें, अहिंसक भाव के मालिक हों, वे जागृत रहे तो अच्छा है, अहिंसक सत्यवादी एवं प्रामाणिक मानव सबसे प्रथम धार्मिक है । प्र.: :- निर्बल अच्छे या सशक्त अच्छे ? उत्तर :- जीव मात्र की वृत्तियों के पूर्णज्ञाता प्रभु महावीर स्वामी ने कहा कि जीवन व्यवहार में हिंसा, असत्य, क्रूरकर्मिता और माया - प्रपंच में रहे हुए मानव निर्बल अच्छे, उसमें उनका ही कल्याण है । जो भाग्यशाली अहिंसक, सत्यवादी, परोपकारी हैं अन्य के लिये जीने वाले हैं वे मन, वचन, काया से सशक्त बनें ये अच्छा है । जागरणशीलता के साथ धार्मिकता, सदाचार, परोपकार की भावना रखने वालों की देवता भी प्रशंसा करते हैं, किन्नरियाँ उनके गीत गाएगी एवं संसार की स्त्रियाँ भी रास गरबा गाएगी । 406
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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