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________________ स्वरुप का साक्षात्कार कर सके; उसके बाद उत्तरोत्तर आगे की श्रेणि में चढ़ते चढ़ते 27वें भव में काल लब्धि और भाव लब्धि का समागम हुआ । अनंत सुखों के भोक्ता भवसिद्धिक बन गए। जैसे भवसिद्धिक स्वाभाविक है वैसे अभव्य सिद्धिक भी स्वाभाविक है । प्र. :- हे प्रभो ! तथा प्रकार के स्वभाव के कारण भव सिद्धिक मोक्ष जाने के बाद क्या संसार खाली हो जाएगा ? उत्तर :- हे श्राविके ! अनंतानंत जीवों से भरा यह संसार किसी काल में भी खाली हो सके ऐसा नहीं है । उदाहरण देकर भगवान ने समझाया अभी तक अपने सिर पर से अनंतानंत समय का भूतकाल चला गया है; एक समय घट रहा है वह भविष्यकाल भी अनंतानंत है, वर्तमान एक ही समय का है । ऐसे तीन काल के समय से भी - हे श्राविके, जीव राशि अनंतानंत गुणा बहुत बड़ी है, इसलिए जीवों से कभी खाली नहीं होता - संसार । प्र. - संसार सर्जक कौन है प्रभु ? उत्तर - जिसकी उत्पत्ति होती है उसका विनाश भी निश्चित है । संसार अनादिकाल का और अनंतकाल तक रहने वाला होने से यह किसी से उत्पाद्य नहीं है, जो स्वयं मरण चक्र में फंसे हुए हों वे संसार सर्जक किस प्रकार हो सकते हैं ? ब्रह्मा यदि सर्जक हो, विष्णु रक्षक एवं शिव सुख-शांति दायक हो तो स्वयं जन्म-मरण के चक्र में कैसे चडे ? - जीव मात्र को स्वयं के शुभाशुभ कर्म भोगना पड़ते हैं; इसलिए जीव स्वयं ही संसार का सर्जक, रक्षक और मारक है। माता-पिता के पूर्व के ऋणानुबंध पूर्ण कर नए माता-पिता के साथ ऋणानुबंध प्रारंभ हो जाता है, उसी समय माता की कुक्षि में जन्म लेने वाला जीवात्मा माता-पिता के संभोग में शुक्र एवं रज का मिलन होने पर संतान स्वत: नो महीने कैद हो जाता है । प्र. :- हे प्रभो ! सुप्तत्व (निंद्रा ) को अच्छा कहा जाता है या जागृत्व को अच्छा कहा जाता है ? उत्तर :- हे श्राविके ! कुछ जीव सुप्त ही रहे तो अच्छा है और कुछ जागृत रहें तो अच्छा है, आठ प्रकार के जीव सुप्त ही रहें तो अच्छा है । 405
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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