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सट्टा खेलने वाले जीव जन्म-मरण के चक्कर में भटकते रहते हैं । जयंति श्राविका के प्रश्न
महावीर प्रभु चतुर्विध संघ के साथ कौशांबी नगरी में पधारे एवं चन्द्रावतरण चैत्य उद्यान में रचित समवसरण में विराजकर धर्मोपदेश दिया । राजा उदायन ने अपने परिवार एवं राज कर्मचारियों को पूरी नगरी सजाने का आदेश दिया । राजा उदायन की भुआ जयंती श्राविका भगवान का आगमन सुनकर अपना पुण्योदय समझ मानव- - जीवन को सफल बनाने के लिए रथ में बैठकर धर्मोपदेश सुनने पहुंच गई ।
तीन प्रदक्षिणा देकर भगवान की देशना के अंत में - विधवा, महाविदुषी, जीवाजीवादि तत्व के ज्ञानी, जैन साधु-साध्वीजी की परम उपासक, जिन शासन की आराधना में सदा जागृत, सुंदर, उत्तम व्यक्तित्व को धारण करने वाली जयंती श्राविका ने प्रभु महावीर से प्रश्न किया और भगवान ने उत्तर दिया उसका संक्षिप्त संकलन निम्न रूप में :
प्र. :- जीव भारी कैसे हो जाता है ? प्रभो ! क्या कर्म करने से जीव भारी होता है ? वजनदार बनता है ?
उत्तर :- हे जयंती श्राविका ! प्राणातिपात, मृषावाद एवं मिथ्यात्व नामक पापस्थानक के सेवन से, सेवन कराने से, मन, वचन, काया से अनुमोदन करने से जीव भारकर्मी बनता है ।
जिस प्रकार वजनदार वस्तु पानी में डालने से नीचे जाती है, उसी प्रकार भारकर्मी जीव तिर्यंचगति, नरक गति की अधोगति में ही जाती है, ऐसे जीव मनुष्यगति में यदि चले भी जाते हैं तो भी नीच कुल में लेकर मजदूरी करते हुए भी दरिद्रता के कारण भूखे ही सोता और भूखा ही उठता है । अर्थ और काम साधन उपलब्ध नहीं होते पूरा दिन आर्त्तध्यान में व्यतीत होता है ।
पूर्व भव में कभी कुछ पुण्य बंध हो तो अच्छे प्रमाण में संपूर्ण साधन मिलने के बाद भी पारिवारिक क्लेश, संघ क्लेश, जानी दुश्मन एवं अहं तथा क्रोध में जलने वाले बनते हैं ।
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