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________________ ©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®OG कर्म प्रकृति : आठ प्रकार से कर्म बन्धन ___ क्षमाश्रमण प.पू. पूर्णानंदजी म.सा. * कर्म प्रकृति :- मोहनीय कर्म जब उदय में आता है; तब जीव वीर्यता से उपस्थान (परलोक के प्रति गमन) करता है । वीर्यता के 3 भेद हैं - बालवीर्यता (अविरति जीव) पंडित वीर्य (सर्व विरति जीव), बाल पंडित वीर्यता (देशविरति जीव) । उपस्थान बाल वीर्यता से होता है। मोहनीय कर्म जब उदय में आता है, तब जीव अपक्रमण भी करता है, (उत्तम गुण स्थान से ही नतर गुण स्थान में जाता है) वह भी बालवीर्यता से एवं संभवत: बाल पंडित वीर्यता से। किए पापकर्म भुक्तान नहीं किए, अनुभव किए बिना नरक, तिर्यंच, मनुष्य एवं देवगति के जीवों का मोक्ष नहीं होता । कर्म के दो भेद बताए हैं, प्रदेश कर्म एवं अनुभाग कर्म, इसमें प्रदेश कर्म अवश्य भोगना पड़ता है, अनुभाग कर्म कुछ भुक्तान होता है, कुछ नहीं होता। ___ वीर्यता का अर्थ है प्राणीमय । 'बाल' का अर्थ है, जिस जीव को सम्यक् अर्थ का बोध नहीं हुआ एवं सद्बोध युक्त विरति न हो तो वह जीव बाल यानि मिथ्या दृष्टि जीव कहलाता है। जो जीव सर्व पापों का त्यागी होता है वह पंडित अर्थात् सर्वविरति हो वह पंडित उसी प्रकार अमुख अंश से विरति होने से पंडित और अमुख अंश से न होने से बाल बाल पंडित' अर्थात् देश विरति जीव। * आठ प्रकार से जीव कर्म बंध कैसे करता है ? इसके उत्तर में प्रभु ने फरमाया है कि - जब ज्ञानावरणीय कर्म का उदयकाल चल रहा हो तब दर्शनावरणीय कर्म का अनुभाव भी नियमा होते हैं । इसके विपाक में दर्शन मोहनीय कर्म (तत्व को अतत्व के रूप में मानना और Vice Versa यह मिथ्यात्व है) भी होता है, तब जीवात्मा आठ प्रकार से कर्म बांधती है। ७०७७०७0000000000038390090050505050505050605060
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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