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इन्द्रियाँ, मतिज्ञान, छः द्रव्य * इन्द्रिय द्वारा आत्मा को ज्ञान होता है, इन इन्द्रियों को आत्मा ने ही अपने हिसाब से रची हुई है । देव-देवी या ईश्वर ने नहीं रची । इन्द्रियों का विषय ग्रहण सर्वथा नियत होता है।
* अंधेरे में आम का स्पर्श करने से मालूम होता है कि आम है, सूघने से मीठी-खट्टे का आभास होता है । रंग पीला होगा ऐसा अनुमान हो जाता है । यह सब मतिज्ञान के अवग्रह, ईहा, अपाय, धारणा, 4 प्रकार में धारणा' के आभारी हैं । अवधान-प्रयोग में धारणा शक्ति की लब्धि ही चमत्कारी बनती है।
* जीव नाम कर्म के उदय से प्राणों को ग्रहण करता है । जिसके प्राण नहीं वह अजीव
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* छः द्रव्य :- जीव, धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, एवं काल। ये छः ही छः द्रव्य नित्य, अवस्थित और अरूपी हैं।
* नित्य : इनके मूल स्वभाव का व्यय नहीं होता, वे प्रत्येक द्रव्य अपने अपने स्वरूप में स्थिर रहने वाले हैं। धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय कभी नहीं बनना।
* अवस्थित : संख्या में हानि-वृद्धि कभी नहीं होती, परस्पर परिणमन नहीं होता इसलिए अवस्थित है।
* अरूपी :- पुद्गलास्तिकाय के अतिरिक्त सभी द्रव्य अरूपी हैं, रूप-मूर्त, चार गुणों से युक्त रूप, रस, गंध, स्पर्श । ___ कोई भी द्रव्य ऐसा नहीं जो गुण (स्वभाव) बिना का हो, अर्थात् गुण द्रव्य को कभी छोड़ता नहीं है।
धर्म-अधर्म-आकाश अखंड और क्रियारहित एक-एक द्रव्य ही है, जीव पुद्गल क्रियावान है। क्रियायुक्त-एक आकार से दूसरे आकार में एवं एक स्थान से दूसरे स्थान में जाने वाले द्रव्य, परमाणु आदि रहित, मध्य बिना के, अप्रदेशी पुद्गल परमाणुओं से बना GUJJJJJJJJJJJJ 377 TUJJJJJJJJJJ