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शासन सेवा
इय संपत्तिअभावे, जत्ता पूयाइ जणमणोस्सणं । जिणजइविसयं सयलं, पभावणा सुद्धभावेणं ।। स. स. 39 जैन शासन को प्राप्त कर जिस आत्मा के पास जैसी शक्ति हो, उस प्रकार की शक्ति द्वारा यत्किंचित् भी उस आत्मा को जैन शासन की प्रभावना करनी चाहिए ।
परमात्मा महावीर ने संयमी जीवों के कल्याणार्थ 'जैन शासन' रूप दीपक प्रगटाया है । इस दीपक में अपनी शक्ति अनुसार एक-दो-तीन चम्मच घी डालने का शुभ कार्य अवश्य करना चाहिए। इससे यह दीपक पाँचवे आरे के अंत तक प्रकाशमान रहे । जगत के जीवों को तारने का, प्रकाश देने का कार्य होता रहे । यही मनुष्य जीवन का सार है ।
जीवन में संप्राप्त रिद्धि-सिद्धि, लब्धि, मान-पान, प्रतिष्ठा का उपयोग संसार के लिए या स्व प्रशंसा के लिए अपने विद्यामय जैन आचार्यों, उपाध्यायों, मुनि भगवंतों एवं श्रेष्ठियों करते नहीं, परंतु शासन प्रभावना के लिए ही करते हैं ।
हम भी इसी दृष्टि से जीवन यापन कर अपना योगदान शासन प्रभावना के तारणहारी कार्य में देकर अपना उत्साह एवं उमंग बताएँ ।
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