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©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©® वह शरणगाह लगेगा । जैसा तैसा कैसा भी है ? मेरे को तो बचा रहा है। जिसको भय लगेगा वह तो ऐसा शरण स्वीकार करेगा । जिसको भय नहीं लगेगा वह ऐसा शरण स्वीकार नहीं करेगा।
* शास्त्रों में 4 शरण बताएं हैं, किन्तु आपके कितने शरण हैं ? कोर्ट की प्राब्लम आई?
- वकीलम् शरणं गच्छामि बाल बढ़ गए?
- हजामम् शरणं गच्छामि कपड़े गंदे हो गए?
- धोबीम् शरणं गच्छामि बीमार हो गए ?
डॉक्टरम् शरणं गच्छामि बहि-चौपड़े बदलना है ? - सी.ए. शरणं गच्छामि थके-मांदे आए घर?
- पत्नीम् शरणं गच्छामि वृद्ध हो गए?
- पुत्रम् शरणं गच्छामि अधिक अस्वस्थ हो गए ? - स्वजनम् शरणं गच्छामि
ऐसे कोई भी व्यक्ति जहां तक आधारभूत लगेगा, शरण भूत लगेगा, वहां तक संसार नहीं छूटेगा, ज्ञानी भगवंतों ने उसका बंधन रूप परिचय कराया है। ___ पू. उपाध्यायजी ने अध्यात्मसार ग्रंथ' में भव स्वरूप अधिकार बताया है। उसमें संसार को समझाने के लिए 20-20 उपमाएँ दी हैं, उसमें एक उपमा में कहा है :
मोह ने मजबूत पांसा बनाया है और उसे तुम्हारे गले में डाला है। उसका पल्लू (एक किनारा) उसके हाथ में है, उस पासे को चिकनाहट से तर कर रक्खा है, इसलिए वो गले में अच्छा लग रहा है, किन्तु जितना चिकनाहट से अच्छा लगता है, उतनी ही उसकी गठान मजबूत होती जाती है और मृत्यु बहुत शीघ्र आती है।
गले दत्वा पाशं तनयवनिता स्नेह घटितं । पुत्र और पत्नि के स्नेह में अनुरक्त डोरी स्नेह के बंधन में चेतना को लिप्त करती है। जिसको बंधन से डर लगता है, उसे ही देव-गुरु-धर्म का शरण अच्छा लगता है । संसार से डर कर आया प्राणी आगम की शरण में आ जाए और यही प्राणी इसका अध्ययन करने लायक है।
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