________________
GOGOGOGOGOGOGOGOGOG@GOGOG@GOGOG@GOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOG
अवगाहना - पर्याप्त सूक्ष्म निगोद की सबसे से कम। अपर्याप्त सूक्ष्म वायुकाय की अवगाहना असंख्यात गुणा अधिक है। अपर्याप्त बादर वायु काय की, पर्याप्त बादर अग्निकाय की, अपर्याप्त बादर अप्काय की, अपर्याप्त बादर पृथ्वीकाय की,
अपर्याप्त प्रत्येक वनस्पतिकाय तथा बादर निगोद की अवगाहना क्रमश: असंख्यात गुणा बढ़ती है।
पांच स्थावर जीवों में वनस्पतिकाय के जीव सबसे सूक्ष्म से सूक्ष्मतर हैं, बादर की अपेक्षा से भी वनस्पति काय ही सबसे अधिक बादर, बादरतर है।
अध्ययन, आध्यात्म, श्रुत ज्ञान
"जिनाज्ञा' में से उदधृत से लेखक :- प.पू. रत्नभानुविजयजी म.
दशवैकालिक नियुक्ति - 21वाँ श्लोक अज्झपस्सायणं कम्माणं अवचओ उवचिआणं ।
अणुवच्चओ अ नवाणं, तम्हा अज्झयणमिच्छन्ति । अर्थ - (श्री श्रुतज्ञान) पूर्व संचित कर्मों का ह्रास और नए कर्म बन्ध का निरोध करने के लिए आध्यात्मा का अनायन प्राप्ति कराने वाला होने से अध्ययन' कहा जाता है।
5 ज्ञान में श्रुतज्ञान' ही 'बोलने वाला ज्ञान है।' सिर्फ श्रुत ज्ञान का ही लेना या देना हो सकता है। मतिज्ञान, अवधिज्ञान, मन:पर्यावज्ञान और केवलज्ञान चारों ही मौन हैं। चारों के ज्ञान को समझने के लिए श्रुतज्ञान का ही आधार लेना पड़ता है।
गुरु-शिष्य ज्ञान लेते-देते हैं; इसलिए सिर्फ श्रुतज्ञान ही संभव है । गुरु शिष्य को श्रुतज्ञान देते हैं उसके साथ दूसरा ज्ञान स्वतः प्राप्त करने की कला सीख लेते है। इसी कारण से निसर्ग सम्यक्त्वी से अधिक अधिगम सम्यक्त्वी जीवों में असंख्य गुण होते हैं । अधिगम सम्यक्त्व प्राप्ति का मूल गुरु मुख से प्राप्त किया हुआ श्रुत ज्ञान तो है ही।
७050505050505050505050505050372900900505050505050090050