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©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®OG पुत्र-पुत्री मोह के उदाहरण : ___ कृष्ण वासुदेव के लघु भ्राता गजसुकुमाल को अरिष्टनेमि भगवान की देशना से वैराग्यभाव उत्पन्न हुआ। कृष्ण ने सोमिल ब्राह्मण की पुत्री सोमा नाम की कन्या का परिणय गजसुकुमाल के साथ करने हेतु अंत:पुर में रखा । माता देवकी गजसुकुमाल के पुत्र मोह के कारण अनुकूल-प्रतिकूल, रागात्मक प्रलोभन, संयम मार्ग कठिन है आदि अनेक प्रकार के योग से भोग की आकर्षित करने की युक्तियाँ करती । गजसुकुमाल ज्ञानगर्भित वैराग्य के दृढ़ रंग में रंगाते ‘महाकाल' नाम के श्मसान में भिक्षु महाप्रतिमा की आराधना करते हैं । गजसुकुमाल 16 वर्ष की उम्र में अंतगड़ केवली बने।
सौमिल ब्राह्मण का सोमा के प्रति पुत्रीमोह भी तीव्र ही था । इस कारण मोहांध बनकर नवदीक्षित गजसुकुमाल मुनिराज के ताजा मुंडित मस्तक पर धधगते खेर के अंगारे गीली मिट्टी की पाल बांधकर रख दी।
एक अति मूल्यवान शिक्षा भूले नहीं । ममत्व एक परिग्रह है । ममत्व को जैन धर्म में कर्मबंध का कारण माना है । ममत्व के त्याग से संधूरित साधना (कर्म निर्जरा का हेतु) होती
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