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को प्रतिकूल स्थिति में सहन करने की क्षमता और बुद्धि देकर धर्म में दृढ़ बनाती है । श्रावक दृढ़ धर्मी और प्रिय धर्मी थे ।
सुरादेव श्रावक, रोग उत्पन्न होने की धमकी से विचलित हो गए । किन्तु पत्नी की प्रेरणा से प्रायश्चित किया । चुल्लशतक श्रावक, संपति नष्ट करने की धमकी से विचलित हो गए, पत्नी की प्रेरणा से प्रायश्चित किया । इन उदाहरणों का सार यह है .. शरीर, संबंध और संपत्ति मन को अस्थिर करती है; यह नबली कड़ी है ।
* नियतिवाद व्यवहार में अनुचित ही है :
सकडालपुत्र की मिट्टी द्वारा बर्तन पकाने की सभी क्रिया पुरुषार्थ जन्य है, ऐसा महावीर प्रभु ने समझाया और सर्वभाव नियत ही है, उसका खंडन करके बता दिया ।
व्यवहारिक जीवन में नियतिवाद को स्वीकारना उचित नहीं है । नियतिवाद स्वीकारने से व्यक्ति निष्क्रिय बन प्रमादी हो सकता है । 'जो होना होगा वह होगा' इस विचार के द्वारा या श्रद्धा द्वारा कार्य नहीं होता । एकांतवाद को स्वीकार न करते हुए पांच समवाय – काल, स्वभाव, नियति, पुर्वकृत कर्म और पुरुषार्थ स्वीकारना सभी प्रकार से युक्त है ।
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* साधु का महाव्रत स्वीकारना, रत्न खरीदने के समान कहा है । * श्रावक के 12 व्रत स्वीकारना, स्वर्ण खरीदने के बराबर कहा है । शक्ति अनुसार खरीदो । रत्न या सोना ।
अंतगड़ सूत्र की महा आत्माएँ
90 अध्ययनों में 90 जीवों का अधिकार है। 51 चरित्र 22वें तीर्थंकर अरिष्टनेमि के शासन के और 39 चरित्र महावीर स्वामी के शासन के हैं । 51 चरित्र में कृष्ण वासुदेव के परिवारों का वर्णन है । जैसे उनके 10 काका, 24 भाई, 8 पत्नी, 2 पुत्रवधूएं, 4 भतीजे, 2 पुत्र और 1 पौत्र का समावेश है । भगवान के समवसरण में आएं, धर्म श्रवण करें, मातापिता की आज्ञा से दीक्षा लें, जरा - मरण की अग्नि में मानव जीवन भस्म हो उसके पूर्व अगुरुलघु आत्मा को बचाए, मुनिवेश धारण कर अंतिम समय में संलेखना करके
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