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________________ २७०७090909009009009090050७०७09090090909050७०७090७०७७०७०७ मेघकुमार - 10 श्रेष्ठ श्रावक * आचारांग सूत्र में बताया गया है :- निर्जरा के हेतु को 'धूत' कहा गया है। धूतवाद ये कर्म निर्जरा का सिद्धांत है । शरीर, उपकरण, स्वजन, पुत्र-पुत्री, माता-पिता, बंधु ये सब ‘पर' हैं । इन सबके “ममत्व” का त्याग करने से ही धूत साधना-कर्म निर्जरा होती है। (1) पूर्वगह छोड़कर स्वजनों के ऊपर का ममत्व भाव का प्रकंपन, (2) कर्म धूत-कर्म पुद्गलों में प्रकपन, (3) शरीर-उपकरण धूत, (4) गौरवधूत और (5) उपसर्गधूत । * भगवती सूत्र :- रचनाकार श्री सुधर्मास्वामी। * ज्ञाता धर्मकथा सूत्र :- आचारांग सूत्र बाल पोथी है तो ज्ञाता धर्म कथा सूत्र वैराग्य पौथी है । इस सूत्र के प्रत्येक अध्ययन-सुखशीलता, कामभोग, विषय कषाय, मोह, प्रमाद को कम कर संयम में स्थिरता का पाठ सिखाते हैं। * मेघकुमार के 3 भव में - पैर की विशेषता : * सुमेरुप्रभ हाथी के भव में परवशता के कारण पैर उठा सकता नहीं स्वयं के मन में उत्पन्न अनुकंपा भाव से खरगोश पर पांव नहीं रखना। * मेरुप्रभ हाथी के भव में स्ववशता के कारण पैर मुड़ता नहीं था। * मेघकुमार - मेघमुनि के भव में स्थविर मुनियों के पैरों की ठोकर और पैरों से उछली रेत संथारे में गिरी वह सहन नहीं हुआ। * उपासक दशांग सूत्र : धन सम्पन्न, समृद्ध और वैभवशाली श्रावकों की आचार संहिता, सीमित परिग्रहयुक्त, निवृत्तमान होते ही संयम की राह पर जाने वाले थे। 10 श्रावक :- आनंद, कामदेव, चुलनीपिता, सुरादेव, चुल्लशतक, कुंडकौलिक, शकडालपुत्र, महाशतक, नंदिनी पिता और शालिही पिता। धर्म करने वाले व्यक्ति को प्रतिकूलता नहीं आती ऐसा नहीं है, परन्तु धर्म श्रद्धा व्यक्ति ७०७७०७000000000003245050905050505050505050605060
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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