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केवलज्ञान का स्वरुप केवल ज्ञान प्रकट होता है उसकी प्रक्रिया 1. वीतराग ज्ञान 2. निर्विकल्प ज्ञान 3. सर्वज्ञ ज्ञान यह तीनों केवल ज्ञान के भावों का प्रकार हैं।
वीतराग ज्ञान : मतिज्ञान यानि वीतराग ज्ञान की विकृति । 12वें गुण ठाणे में भी सर्वज्ञ निर्विकल्प दशा प्राप्त होने के पूर्व अधिकारी निर्विकल्प दशा होती है।
कारण ? छद्मस्थ अवस्था है । मतिज्ञान तो अभी उपस्थित ही रहेगा। विकार विकल्प दूर होता है और मतिज्ञान अधिकारी बनते ही वीतरागता प्रकट होती है। अभी तक आवरण है, छद्मस्थता है।
आवरण विकल्प दूर होता है तब रावरण हुआ जाता है, इसलिए ज्ञान अखंड, अक्रमिक बनता है।
वेदन विकल्प दूर होने पर सुख, दुःख, वेदन का अभाव होने पर आनंद वेदन में निमग्न आत्मा की अनुभूति अनंत रस की वीतरागता के कारण आवरण और वेदन विकल्प हट जाते हैं।
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