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१९७७
* मन को मारना, मन की मृत्यु, मन में दुःख - संताप से मुक्ति उसका नाम वीतरागता । * प्रकृति में परिवर्तन शक्य है, धर्म के साथ प्रकृति में परिवर्तन लाना ही पड़ता है । तो ही धर्म आत्मसात हुआ माना जाता है ।
* मन और मस्तिष्क, मानव मन, द्रव्य मन, भाव मन ।
* भाव मन के 2 प्रकार - Conscious mind, subconscious mind.
* मन की मान्यता और कर्मबन्ध, मान्यता का Storage लब्धि मन ।
* धर्म आत्मा को, देह-इन्द्रिय-मन की पराधीनता से मुक्त करता है ।
देह - इन्द्रिय-मन तीनों से आत्मा अलग है, यही रटते रहो ।
उदाहरण – प्रसन्नचंद्र राजर्षि, ईलायची कुमार, श्रेणिक राजा ने किया । देह का राग, एकत्व भावना आदि से 'मान्यता' में परिवर्तन लाइए ।
* जैसा पुरुषार्थ वैसी प्रवृत्ति, पुरुषार्थ कौन कराता है ? मन के भाव । गुणों में सुख का अनुभव न हो तब तक मान्यता नहीं बदलती ।
मनोविजय के पांच सोपान
महावीर नहीं बनना हो तो महावीर की आज्ञा संपूर्ण माननी पड़ेगी ।
* अभवि जीव मोक्ष क्यों नहीं जाता है ?
मूल में मान्यता ही गलत है, 50%, 90%, 99% माने यह नहीं चलता है । मिथ्यात्व का
सघन आवरण ।
दा. त. स्थूलभद्र के पिता शकटाल, मिथ्यात्वी वररुचि विद्वान ने मूल में शकटाल की पत्नी को साधा, नंदराजा की ' मान्यता' को ही बदल दिया, मन की नाड़ी बुद्धि को ही पकड़ना चाहिए।
* जीव को विषय कषाय में ही सुख मालूम होता है । अनंत काल से यह मान्यता दृढ़ हो गई है, कषाय में आग है; उसका आलिंगन नहीं होता । हम पदार्थ को प्रारंभ से ही देखना
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