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मनोविजय और आत्मशुद्धि * समकित में संपूर्ण मान्यता शुद्धि
मान्यता :- मन क्या मानता है ? क्या नहीं मानता है ? बीड़ी पीना गलत है। मदीरा (Wine) पीना Health के लिये अच्छा है।
अच्छी मान्यताओं को सत्य कैसे करना ? गलत मान्यता को कैसे निकालना ? * मन :- द्रव्य मन और भाव मन । उपयोग मन और लब्धि मन । (भाव मन के दो प्रकार)
लब्धि मन के परिवर्तन के लिए मान्यता को प्रथम तत्वानुसारी करो। लब्धि मन :- अंतर के अनंत भवों के संग्रह हुए भावों का समूह । भाव निमित्त के बिना व्यक्त नहीं होते । सत्य को असत्य, असत्य को सत्य माने । मान्यता से भरे हुए
लब्धिमन में सम्यक्त्व को लाना है। * धर्म अर्थात् क्या ? :- जो तुमको तुम्हारा स्वामी बनाने में साधन रुप हो, वह आत्मा को
देह-इन्द्रिय-मन की पराधीनता से श्रावक के लिए ऊपर उठाए वह धर्म कौन सा ? -
सामायिक। * देह-इन्द्रिय-मन :- ये तीनों आत्मा से अलग हैं; इनका रटन करो, मन को जानो, __ पहिचानो और समझो । इन तीनों का त्याग करना चाहिए ? नहीं, साथ रख कर, भाव
मन का कन्ट्रोल कम करते-करते मन को कंट्रोल में ले लो। * भौतिक रिद्धि-सिद्धि में अस्थिरता - श्रेणिक राजा/अनाथी मुनि का उदाहरण । * वृत्ति और परिणति, दोनों एक रुप हो जाए तो ही 12 भावना से मान्यता का संपूर्ण __परिवर्तन किया जा सकता है। * मनोविजय की साधना के 5 सोपान :- श्रद्धा, संकल्प, संवेग, समझ, साधना - मुझे
मन को जीतना ही है, विचारों की स्थिरता, एकाग्रता, गंभीरता लाने की साधना के बारे
में जानना - समझना। * मंदिर में मस्तक (ललाट) पर तिलक करके अंदर जाते हैं । किस श्रद्धा के बल पर ? 5@G©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®© 293 90GOGOG@GOGO®©®©®©®©®©®©®OGO