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करना, इकट्ठा किया हुआ धन धर्म प्रभावना में खर्च करना चाहिए । अन्यथा सारी मेहनत कीचड़ में हाथ डालकर हाथ धोने जैसी स्थिति कही जाएगी।
उदाहरण :- - अशिक्षित माता- -पिता की संतान को विद्वान बनते देखा है, तो उसमें पूर्व जन्म के संस्कार ही कारण माने जाएंगे ।
सावधानी से चलते हुए मनुष्य पर ऊपर से ईंट पत्थर गिरते हैं तो गंभीर घाव होता है; इसमें पूर्व कर्म का अनुसंधान कारण माना जाता है । मूल वर्तमान जन्म में नहीं, पूर्व जन्म में है । इसी कारण वर्तमान जीवन भविष्य के भवों का मूल है ।
पंचक : आत्मा, कर्म (पुण्य-पाप), पुनर्जन्म, मोक्ष, परमात्मा ये पांच की श्रद्धा जीव को सच्चे मार्ग पर ले जाती है ।
पूर्व जन्म अगर है तो याद क्यों नहीं आता ? यह प्रश्न उठता है लेकिन वर्तमान जन्म का भी क्या सभी कुछ याद रहता है ? विस्मृतियों का आवरण आ जाता है । आवरण के बाद भी किसी-किसी को बहुत कुछ याद भी रहता है ।
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मनुष्य में अपने कार्यों की जिम्मेदारी आने वाले समय से जुड़ी होती है । कभी अपराध आदि राजदंड भोगना पड़े ऐसा भी बनता है; उस समय पुनर्जन्म का सिद्धांत मानसिक शांति देता है
अपने जीवन में होने वाली आकस्मिक घटना भी किसके द्वारा हुई - कैसे हुई। ऐसे विचार में अदृष्ट कर्म के नियम तक पहुँचना ही पड़ता है ।
कर्म का नियम एक ऐसा निश्चित और न्यायमय विश्वशासन है । प्राणी मात्र के कार्य को योग्य उत्तर देता है ।
जन्मांतर वाद कार्य में शीघ्रता से कर्तव्य पालन कराता है । कारण कि कर्तव्य पालन कभी निष्फल नहीं जाता । सत्कर्म में जो प्रवृत्त रहता है उसको मृत्यु का भय नहीं रहता । वह आत्मा को नित्य मानता है, मृत्यु को देह विलय के अतिरिक्त अन्य कुछ भी नहीं मानता ।
जो आत्मा की नित्यता को समझता है वह मानता है कि दूसरे का बुरा करना स्वयं का
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