________________
GOOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOG@GOGOG@GOGOGOGOGOGOG
(तप, त्याग, संयम) की शक्ति प्रबल है । वैराग्य ही साधक का परिणाम है। * सच्चे धर्म का काल अति अल्प है। (भाव चरित्र में अधिक से अधिक 7-8 भव ही हैं)
जिससे भूतकाल के अनंत पापों की क्षपणा होती है । यह विधान सूचित करता है कि
धर्म की शक्ति अचिंत्य है। * रामबाण औषधि - अनंत भवों के पाप का प्रायश्चित, परिणामपूर्वक की विरति' है। * परिणाम की तीव्रता या मंदता का आधार रुचि पर निर्भर है । गुण की रुचि पूर्वक का
शुभ परिणाम तीव्र है, अरुचि हो तो मद । दोष की रूचिपूर्वक का अशुभ परिणाम तीव्र है। अरुचि हो तो मद।
दृष्टांत :- छोटी-सी अहिंसा की धर्म किया और साथ में उसके रुचि भी अहिंसा की रही तो तीव्र शुभ परिणाम। * करोड़ों का दान करने के बाद भी पैसा ही पैसा प्राप्त करने का मन हो तो शुभ परिणाम
अतिमंद। * उपवास करे किन्तु रुचि तो भोग में ही है त्याग में अरुचि है-तो मंद शुभभाव। * छोटी सी कीड़ी को मारता है, हिंसा की रुचि से मारे, हिंसा यह पाप है ऐसा उसमें न माने
तो छोटी-सी हिंसा भी तीव्र अशुभ भाव है। * समकित प्राप्त आत्मा - लोभी होते हुए भी पैसा इकट्ठा करने लायक नहीं है ऐसा दृढ़ता
के साथ मानने वाला होने से मंद अशुभ परिणाम बांधता है। * निमित्त की महत्ता - कर्म की कार्य शक्ति में यानि कर्म का विपाक बताने में निमित्त हाथ
पैर समान कहे गए हैं। निमित्त :- अनुकूल - सबल : कर्म का विपाक कर्म शक्ति हो उससे अधिक।
प्रतिकूल - निर्बल : कार्यशक्ति हो उससे कम विपाक।
मध्यम होता है : कार्य शक्ति हो उतना ही विपाक। 90GOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOQ 257 GOOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGO