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कर्म का साथ यात्रा – सम्यक्दर्शन से मोक्ष की
(राग - केदार)
आव्यो जगमां एकलो, साथे कर्म नो सथवारो रे, ज्ञानी कहे छे सम्यग् दर्शन, जन्म मरण नो आरो रे ।
आव्यो जग मां ....
वितरागी वैभव ना समज्यो, रागी थई तूं भव-भव भटक्यो, राग द्वेषनां तांडव काजे, थाये ना छुटकारो रे ॥
आव्यो जग मां ....
मानव जन्म मल्यो अति दुर्लभ, छुटकारो करवाने सुलभ, रत्नत्रयी ना पंथे विचर तू, झलहलशे जन्मारो रे ॥
आव्यो जग मां ....
सर्व जीवों ने 'मिच्छामि दुक्कडं', भावजे तूं अरिहंत अधिगम, 'श्रद्धांध' हृदये भजतां उघडशे, मोक्षपुरीनां द्वारो रे ॥
आव्यो जग मां ....
'श्रद्धांध' 5/1999
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