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नाश होने वाला कषाय है । क्रोध मान, माया, पूर्णत: 9वें गुणस्थानक में नष्ट (समाप्त) होते
हैं।
* कामवासना बुरी है या धन की ममता बुरी है ?
कामवासना से ज्यादा धन की ममता सब से अधिक भयानक है । कामवासना अधम है, तो धन की ममता अधमाधम है। काम की इच्छा आर्त्तध्यान है । धन की लेश्या रौद्र ध्यान बनकर नरक गति का कारण बनता है ।
काम को वेद मोहनीय उत्पन्न करता है, वह 9वें गुणस्थानक पर नष्ट होता है । अर्थ की लेश्या को उत्पन्न करने वाला मोहनीय कर्म 10वें गुण स्थानक पर नष्ट होता है ।
कामवासना में (समय, शक्ति, व्यक्ति, समाज, इज्जत की मर्यादा) मर्यादा बाधा बनती है, धन की लेश्या में मर्यादा बाधा नहीं बनती ।
* आत्मिक दृष्टि से जो सो रहा है वह मिथ्यात्वी है, जो जागृत है वह समकिती है ।
जंबुस्वामी को पूर्व भव में मोहनीय कर्म का निकाचित उदय था । 12 वर्ष तक छट्ट के पारणे छट्ठ करते थे फिर भी दीक्षा प्राप्त नहीं हुई । बिना पुरुषार्थ के चारित्र मोहनीय कर्म के सघन उदय की ओट लेकर नहीं बैठा जाता ।
देव और नरक के जीवों को निकाचित चारित्र मोहनीय कर्म का उदय होता है । सामान्य से 1 लाख में एकाध कर्म निकाचित हो सकता है ।
संसार की बातें कर्मों पर छोड़ देना चाहिए, किन्तु धर्म के कार्यों में पुरुषार्थ को महत्व देना चाहिए ।
हठवादी को उपदेश देने की शास्त्रकारों ने मना की है । ऐसा व्यक्ति प्रवचन श्रवण करने के लिए अयोग्य है । कच्चे घड़ों में पानी डालने जैसा है। भरा हुआ घड़ा फूट जाएगा। पानी भी व्यर्थ जायेगा ।
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