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तत्व झरणा
- गणिवर्य मेघदर्शनविजयजी लिखित वीतरागोऽप्ययं देवो, ध्यायमानो मुमुक्षुभिः ।
स्वर्गापवर्गफलदः, शक्तिस्तस्य हि तादृशो ।। वीतराग देव का मुमुक्षु (ज्ञान एवं धर्मप्राप्ति के जिज्ञासु) अन्तर्मन से ध्यान करते हैं तो वो उनको स्वर्ग और अपवर्ग = मोक्षरूपी फल देने वाला होते है, कारण कि उस वीतराग देव की शक्ति ही ऐसी होती है । जो व्यक्ति इन परमात्मा के गुणों का स्मरण करता है; भक्ति करता है, वंदन करता है, पूजन आदि करता है, उसके दुःख और दोष आत्मा से दूर हो जाते हैं और वो एक भगवान जैसा स्वरूप पा जाता है। उसी का नाम परमात्मा की प्रसन्नता ...
तित्थयरा में पसीयंतु - तीर्थंकर परमात्मा मेरे ऊपर प्रसन्न हों। * अग्नि में कहाँ राग है ? फिर भी जो विधि से तापता है उसकी ठंड दूर करती है और बीच
में हाथ डालता है तो जलाती है। * रेचक चूर्ण जो लेता है उसकी कब्जियत दूर होती है, नहीं लेता है उसकी नहीं होती है।
तो क्या चूर्ण राग-द्वेष वाला है ? * सूर्य प्रकाश देने वाला है किन्तु तलघर आदि में प्रकाश नहीं पहुँचाता तो क्या उसमें
राग-द्वेष है ? नहीं ! अग्नि, रेचक चूर्ण, सूर्य आदि राग-द्वेष रहित हैं, उनमें ऐसी अद्वितीय शक्ति है, उसी प्रकार राग-द्वेष रहित परमात्मा की शक्ति भी अद्भुत है, अपूर्व है । भगवान के सन्मुख नयनों से नयन मिलाकर जो खड़ा हो जाता है उसे अतिशय लाभ की प्राप्ति होती है और जो उनकी आशातना करता है उसको प्रत्यक्ष
चमत्कार-यानि उसका दुष्परिणाम का अनुभव करना पड़ता है। * प्रसन्नता हई अर्थात लाभ हआ:- परमात्मा की भक्ति से मोक्ष से लेकर सभी पदार्थों की
प्राप्ति का लाभ होता है, यही तो परमात्मा की प्रसन्नता है।
व्यवहार नय के आधार पर भक्ति गीतों की कितनी पंक्तियाँ गाई जाती हैं ? तुंही माता, तू ही विधाता, चाहे वो सात राज दूर है हम से, फिर भी मेरे हृदय में तुम्हारी भक्ति का स्वर चल रहा है। व्हाला सीमंधर स्वामी, अरजी आ मारी सुणजो अंतर्यामी।' GOOGOGOGOGOGOGOGOGOGOOGO90 210 90GOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGe