SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 232
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * निम्न अंग 32 लक्षण युक्त बालक मानव शरीर के ३२ लक्षण (अंग विजयी ग्रंथ में भगवंत के शरीर के लिए लिखा है) 7 अंग - लाल 6 अंग ऊँचे 5 अंग पतले 5 अंग दीर्घ 3 अंग विस्तृत 3 अंग छोटे 3 अंग गंभीर 32 कुल नख, पांव के तलवे, हथेली, जिह्वा, ओष्ठ, तालुआ, आंखों के कोर बगल का भाग, हृदय, गर्दन, नाक, नख, मुख । दांत, चमड़ी, केश, अंगुलियों के पेरवे, नख । नेत्र, वक्षस्थल (छाती), नाक, दाढ़ी, भुजा । ललाट, स्वर, मुख । जंघा, लिंग, गर्दन । स्वर, नाभि, सत्व । 32 लक्षण छत्र, कमल, धनुष, रथ, कछुआ, अंकुशवाव, स्वस्तिक, तोरण, तालाब, सिंह, वृक्ष, चक्र, हाथी, शंख, समुद्र, कलश, प्रासाद, मत्स्य, जव, यज्ञ, स्तंभ, कमंडल, पर्वत, चामर, दर्पण, बैल, ध्वजा, अभिषेक युक्त लक्ष्मी माला, मयूर । ये बत्तीस लक्षण अति पुण्यशाली जीव को होते हैं । 1 तीर्थंकर की आत्मा अपूर्व एैश्वर्य की अधिकारिणी होती है । अनंत ऋद्धि-सिद्धि की भोक्ता होने पर भी कर्म क्षय कर मोक्ष को प्राप्त करती है । चक्रवर्ती कर्म के अनुसार भोग सामग्री में आसक्त होकर नरक में भी जाते हैं, देव गति में भी जाते हैं, कर्म क्षय कर मोक्ष में भी जाते हैं । बलदेव को छोड़कर वासुदेव प्रति वासुदेव आरंभ समारंभ के कारण नरक में जाते हैं । 18 प्रकार के आभ्यंतर दोषों का सर्वथा अभाव होता है । तीर्थंकर का जीव, दानांतराय, लाभांतराय, भोगांतराय, उपभोगांतराय, वीर्यांतराय, हास्य, रति, अरति, भय, शोक, दुर्गंध, राग, द्वेष, काम, अज्ञान, निंद्रा, मिथ्यात्व, अविरति, द्रव्य से तीर्थंकर के जीव सर्व प्रकार के रोगों से मुक्त होते हैं । 199
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy