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श्रद्धा में अटल रहकर अंतर ज्योति के प्रकाश में
विहार करता हूँ तब बाहर से अंध वह तु
श्रद्धांध
शिवमस्तु सर्व जगत: परहित निरता भवंतु
भूत गणा: दोषा: प्रयान्तु नाशम् सर्वत्र सुखी भवतु लोक:
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