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कोशा/वेश्या (कोष = गुणरत्नों का खजाना) और स्थूलीभद्रजी मुनि । उन्होंने गुरु आज्ञा लेकर कोशा वैश्या के घर उसकी चित्रशाला में चातुर्मास किया । कोशा वैश्या को प्रतिबोध देने आए थे। वैश्या ने स्थूलीभद्र मुनि को अपनी मोह माया जाल में फंसाने का बहुत प्रयास किया। हाव-भाव, विभ्रम, विलास, कामोत्तेजक, नाटक-गायन, सबकुछ किया लेकिन स्थूलीभद्रजी का रोम मात्र भी चलायमान नहीं हुआ । अंत में मुनि ने कोशा को प्रतिबोध देकर श्राविका बना दी । उसको श्रावक के 12 व्रत उच्चरा दिए । 12 व्रत में चौथे व्रत के नियम में कुछ आगार रखा । राजा की आज्ञा से आए हुए पुरुष के साथ समागम के अलावा अन्य पुरुष का संग नहीं करने का नियम लिया । कोशा चिरकाल तक जैन धर्म का पालन कर स्वर्ग गई।
भय किसलिए ? जब तक भय नहीं आता है तब तक मन में भय से डरना किन्तु जब भय सामने आ जाए तो डटकर मुकाबला करना । बाद में भय रखना व्यर्थ है।
अगत्य की यह शिक्षा है कि जिसका शरण लिया उसी से भय उत्पन्न हो जाए तो प्रसन्नता के साथ भय सहन करना योग्य है। ___ माँ और गुरु :- वज्रस्वामी 3 वर्ष की उम्र में माता के (जो उस समय गृहस्थी में थी) साथ रहना या पिता के पास जिन्होंने दीक्षा ले ली थी और गुरु पद पर स्थापित थे। उनके साथ रहना, कुछ समय विचार किया कि 'माता तीर्थ रुप है परन्तु वह इसी भव में सुख देने वाली है और गुरु तो प्रत्येक भव में सुख दे सकते हैं।' इस विचार से अपने पिता का ओघा लेकर दौड़ गए। 3 वर्ष की उम्र में नन्हे बालक वज्रकुमार ने दीक्षा ले ली । बालक को दीक्षित देखकर माँ को भी वैराग्य की प्राप्ति हो गई और दीक्षा ले ली । वज्रस्वामी की बाल्यावस्था भी कैसी प्रभावशाली है।
मधु - मद्य - मांस - मक्खन ___'उपदेश प्रासाद' ग्रंथ से उद्धृत मद्यै मांसै मधुनि च, नवीनतो तक्रतो बहिः ।
उत्पद्यन्ते विलियन्ते, सूक्ष्माश्च जन्तुराशयः ॥1॥ अर्थ :- मद्य में (मदिरा), मांस, मधु (शहद) और छाछ से निकाला हुआ मक्खन में हर पल सूक्ष्म जंतुओं का समूह उत्पन्न होता है और नाश होता है। 90GOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGO90 193 GOOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGO