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समकित
(राग - चेत चेत नर चेत)
करे नहीं फरियाद ने, रहे सदाय प्रसन्न चित्त, आर्त्तध्यान थी दूर रहे, जे पामी गया समकित । पंकज सम संसार मां, राखे अनेरी रीत, हृदयंगम वाणी वदे, जे पामी गया समकित ॥ जिन आज्ञानी वाड़ मां, जे रही थाए स्थित, सड़सठ फूलों खीलवी रहे, जे पामी गया समकित ।। श्रद्धांमां 'श्रद्धांध' बनु प्रभु, प्रकटे अनुपम प्रीत, आ भवमां भावित थईने, हुँ पण पामुं समकित ॥ जे समकित पामी गया, तेनो संसार सीमित, अर्ध पुद्गल परावर्त काले, 'शिवपुरमां' अंकित ॥
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“श्रद्धांध”