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भाव श्रावक के भावगत 17 लक्षण
भवोभव का संबल देने वाले जिन कल्याणक दिन है । कल्याण करने वाले साधन को समझो । क्या खराब है यह सोचकर जानकर कल्याणक होना संभव है ।
च्यवन : देवलोक का सुख खराब है, ऐसा तीर्थंकर देवों ने विचार किया था । जन्म : 9 माह तक मां के गर्भ में अंधेरी कोटड़ी में नहीं लटकना ।
दीक्षा : संसार नाम ही खराब है ।
केवल ज्ञान : घाती कर्म खराब है ।
निर्वाण : अघाती कर्म खराब है ।
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खराब क्या है ? इसका चिंतन न किया जाए तो कल्याणक, कल्याण के कारण नहीं बनते, शरीर स्वजन, संपत्ति, यह त्रिपुटी का संसार में बोलबाला है ।
जिन, जिनाज्ञा, जिन प्ररुपित मार्ग की त्रिपुटि के अध्यात्म में बोलबाला । चैत्यवंदन करने के बाद 24 मिनिट प्रभु के समाने चिंतन करना चाहिए ।
भाव श्रावक की भव्यता
गणिवर्य श्री नयवर्धनविजयजी म.सा. 'धर्मरत्न' प्रकरण से उद्धृत
रचनाकार (शास्त्रकार) परमर्षि श्री शांतिसूरीश्वरजी म.
* क्रिया :- क्रिया द्वारा जीव जो कर्म बांधता है उससे अधिक भाव द्वारा कर्म बंधन करता है । आत्मा प्रवृत्ति के द्वारा कर्म क्षय करती है, उससे कहीं अधिक वृत्ति / भाव से क्षय करती है । आराधना को भाव का स्पर्श होता है तब शून्य (0) पर एक्का ( 1 ) उभरता है।
पू.
* द्रव्य - अनुष्ठान (क्रिया) द्वारा देवलोक प्राप्त होता है ।
भाव अनुष्ठान मोक्ष की प्राप्ति करवाता है ।
भाव धर्म का अभाव क्रिया को शून्य बना देता है । जब भाव धर्म जीव में मिल जाता है, CHCHCHE 146
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