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________________ ®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©GOGOG दुनिया देखती रहेगी, तुम किनारे पर पहुँच जाओगे जैनों का गृहस्थाश्रम: सामान्य गृहस्थ धर्म के रूप में वीतराग प्रभु की पूजा, सद्गुरु की सेवा, द्वार पर आए को कुछ देना, साधर्मिक की आदरपूर्वक भक्ति करके, भोजन करवाकर, कुमकुम का तिलक कर श्रीफल-रूपये देना । दूसरी बार पधारने के लिए निमंत्रण देना । धर्म के मार्ग पर उदारता पूर्वक उपयोग करना । घर में समस्त रुपया-पैसा खर्च हो जाता है, मात्र सत्कार्य में उपयोग क्रिया धन ही बचता है । धन खर्च कर कभी अफसोस या उसकी पुन: मांग न करना । दान धर्म की महिमा घटती है । भाव कभी न बिगाड़ना तपस्वी बनना । भावना रखना कि सस्नेही प्यारा रे, संयम कब ही मिले ? संयम कब अंकृत (अंगीकार) करूँ ? राजकुमार कितने ही दीक्षा मार्ग पर गए हैं। जिम तरु फुले भमरो बेसे, पीड़ा तरस न उपावे । लेई रस आतम संतोषे, तिम मुनि गोचरी लावे । भ्रमर जैसे पुष्प को हानि पहुँचाए बिना रस पीकर स्वयं तृप्त होता है, उसी प्रकार मुनि भी गृहस्थ की रसोई में से इस प्रकार और इतना लेते हैं कि गृहस्थ को दूसरी बार पुन: न बनाना पड़े। बिल्कुल लौलुपता बिना लावे। ___ दयालु बनकर श्रावक को पृथ्वी-पानी-अग्नि-वायु-वनस्पति की भी दया रखना चाहिए । पानी के उपयोग में सावधानी रखना । काम बिना पंखा (फेन) चलता हो, हवा के कारण खिड़की-दरवाजा खुलते-बंद होते हों आदि । यह समस्त कृत्य आत्मा को अपराधी बनाते हैं । यह अपराधी मनोवृत्ति का व्यापार है। ___ पांच समिति ईर्या, भाषा, एषणा, आदान एवं निक्षेप, परिष्ठापन तथा तीन गुप्ति मन-वचन-काया श्रावक जीवन में अति आवश्यक है। ___ मौन की आदत डालो । प्रतिदिन निरर्थक बोलने का टालो, एक आसन पर, एक स्थान पर ज्यादा समय बैठने की, सामायिक में स्थिर रहने की, पद्मासन में जाप करने का नियम बनाओ, आदत डालो । परमात्मा जैसा जीवन जीते सुखी बन जाओ । इससे ७०७७०७000000000007650090050505050505050605060
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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