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________________ न धातु | त्वर्थ | संबध | वर्तमान वर्तमान | भलिभूत तार भूत | तव्य । अनीय | य કરિ | કર્મણિ क्री | क्रेतुम् | क्रीत्वा | क्रीणत् | क्रीयमाण| क्रीत | क्रीतवत् | क्रेतव्य | क्रयणीय क्रेय क्रीणान क्रय्य मुष् | मोषितुम् मुषित्वा | मुष्णत् मुष्यमाण | मुषित मुषितवत् | मोषितव्य | मोषणीय | मोष्य अश् | अशितुम् अशित्वा | अश्नत् अश्यमान अशित अशितवत् | अशितव्य | अशनीय आश्य ज्ञा[जा ज्ञातुम् | ज्ञात्वा | जानत् ज्ञात | ज्ञातव्य | ज्ञानीय | ज्ञेय ज्ञायमान ज्ञातवत् जानान - ल - - 3.8 सरस संस्कृतम्-२ 8.8.833388.8.8.8.8.8 पा6-888 -- 6 6 गृह्यमाण | गृहीत | गृहीतवत् | ग्रहीतव्य | ग्रहणीय | ग्राह्य मृद्यमान बध्यमान ग्रह | ग्रहीतुम् गृहीत्वा | गृह्णत् गृह्णान मृद् | मर्दितुम् | मृदित्वा | मृद्नत्, बन्ध् | बद्धम् | बद्ध्वा | बध्नत् पुनत् पुनान स्तृ स्तरितुम् स्तीर्वा | स्तृणत् स्तृणान मृदित बद्ध पूत पूयमान पव्य मृदितवत् | मर्दितव्य | मर्दनीय | मृद्य बद्धवत् बन्द्धव्य बन्धनीय | बन्द्ध्य पूतवत् | पवितव्य | पवनीय पाव्य स्तीर्णवत् | स्तरितव्य | स्तरणीय | स्तार्य स्तीर्यमाण स्तीर्ण
SR No.007261
Book TitleSaral Sanskritam Dwitiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhaktiyashvijay
PublisherDivyadarshan Trust
Publication Year
Total Pages296
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size33 MB
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