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:: प्राग्वाट - इतिहास ::
अन्य क्षेत्र में हुये व्यक्तियों का वर्णन चला है।' इस प्रकार के वर्गीकरण में जो सहजता और सुविधा दृष्टिगत हुई, वह यह कि एक ही क्षेत्र अथवा एक ही विषयवाले वर्णन काल के अनुक्रम से एक ही साथ था गये और पाठकों को एक ही क्षेत्र में होने वाले ऐतिहासिक व्यक्तियों का परिचय अखण्ड धारा से एक साथ पढ़ने को प्राप्त हो सका । प्रस्तुत इतिहास के बाँहे पृष्ठ पर के शीर्षभाग पर 'प्राग्वट - इतिहास' लिखा गया है और दाहिने पृष्ठ के शीर्षभाग पर वर्णन किया जाता हुआ विषय और उस विषय से संबन्धित व्यक्ति, वस्तुविशेष अथवा कुल का मामोल्लेख । दोनों खण्डों में विषयानुदृष्टि से वर्गीकरण निम्न प्रकार दिया गया है :
द्वितीय खण्ड
१. राजनीति अथवा राज्यक्षेत्र में हुये व्यक्ति और कुल ।
२. प्रा० ज्ञा० बन्धुओं के मन्दिर और तीर्थो में किये गये पुण्यकार्य और उनकी संघयात्रायें ।
३. श्री जैन श्रमणसंघ में हुये महाप्रभावक आचार्य और साधु |
४. श्री साहित्यक्षेत्र में हुये महाप्रभावक विद्वान् एवं महाकविगण |
५. श्री जैनवाङ्गमय की सेवा करने वाले सद्गृहस्थ |
६. सिंहावलोकन |
तृतीय खण्ड
१. मन्दिर तीर्थादि में निर्माण - जीर्णोद्धार कराने वाले सद्गृहस्थ । २. तीर्थ एवं मन्दिरों में देवकुलिका - प्रतिमा-प्रतिष्ठादि कार्य कराने वाले । ३. तीर्थादि के लिये सद्गृहस्थों द्वारा की गई संघयात्रायें ।
४. श्री जैन श्रमणसंघ में हुये महाप्रभावक आचार्य और साधु ।
५. श्री साहित्यक्षेत्र में हुये महाप्रभावक विद्वान् एवं महाकविगण |
६. श्री जैनवाङ्गमय की सेवा करने वाले सद्गृहस्थ ।
७, विभिन्न प्रान्तों में सद्गृहस्थों द्वारा प्रतिष्ठित प्रतिमायें ।
८. कुछ विशिष्ट व्यक्ति और कुल ।
६. सिंहावलोकन |
फिर प्रत्येक व्यक्ति, कुल एवं वस्तु के वर्णन को भी यथाभिलषित एवं आवश्यक प्रतीत होते हुये उपशीर्षक एवं आंशिकशीर्षकों (Side Headings) से संयुक्त करके वर्णितवस्तु को सहज गम्य एवं सुबोध बनाने का पूरा २ प्रयास किया है । विषयानुक्रमणिका के देखने से यह शैली और अधिक सरलता से समझ या सकती है, अतः इस पर पंक्तियों का बढ़ाना यहां अधिक उचित नहीं समझता हूँ ।
शिल्प- स्थापत्य
जैन समाज के ज्ञान भण्डारों में रहा हुआ साहित्य जिस प्रकार बेजोड़ है, इसका जिनालयों में रहा हुआ शिल्पकाम भी संसार में अनुपम ही है । परन्तु दुःख है कि दोनों को प्रकाश में लाने का आज तक जैन- समान