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________________ :: प्रस्तावना:: १८. श्री साहित्यक्षेत्र में हुये महाप्रभावक विद्वान् एवं महाकविगण २१७ १६. न्यायोपार्जित द्रव्य का सद्व्यय करके जैनवाङ्गमय की सेवा करने वाले प्रा० ज्ञा० सद्गृहस्थ २२३ २०. सिंहावलोकन २३८ तृतीय खण्ड इस खण्ड की रचना भी प्रामाणिक साधनों के आधार पर ही द्वितीय खण्ड की रचना के समान ही की गई है। इस खण्ड में विषय निम्नवत् आये हैं: १. न्यायोपार्जित स्वद्रव्य को मन्दिर और तीर्थों के निर्माण और जीर्णोद्धार के विषयों में व्यय करके धर्म की सेवा करने वाले प्रा० ज्ञा० सद्गृहस्थ २४६ २. तीर्थ एवं मंदिरों में प्रा० ज्ञा० सद्गृहस्थो के देवकुलिका-प्रतिमाप्रतिष्ठादि कार्य २६३ ३. तीर्थादि के लिये प्रा. ज्ञा० सद्गृहस्थों द्वारा की गई संघयात्रायें ३२१ ४. श्री जैन श्रमणसंघ में हुये महाप्रभावक आचार्य और साधु .३२४ ५. श्री साहित्यक्षेत्र में हुये महाप्रभावक विद्वान् एवं महाकविगण ३७४ ६. न्यायोपार्जित द्रव्य का सद्व्यय करके जैनवाङ्गमय की सेवा करने वाले प्रा० ज्ञा० सद्गृहस्थ ३८० ७. विभिन्न प्रान्तों में प्रा० ज्ञा० सद्गृहस्थों द्वारा प्रतिष्ठित प्रतिमायें. ४०६ ८. कुछ विशिष्ट व्यक्ति और कुल ४६७ ६. सिंहावलोकन वर्णनशैली यद्यपि वर्णन करने का दंग स्वयं लेखक का होता है, परन्तु वह वयवस्तु के वशवी रह कर ही ढलता और विकशता है। प्रस्तुत इतिहास को प्रथम तो तीन खण्डों में विभाजित किया गया, जिसके विषय में और फिर प्रत्येक खण्ड में अवतरित हुये विषयों के विषय में भी पूर्व के पृष्ठों में कहा जा चुका है। अब यहां जो कहना है वह यही कि प्रत्येक खण्ड में आये हुये विषयों को काल के अनुक्रम से तो लिखना अनिवार्य है ही; परन्तु मैंने प्रस्तुत इतिहास में क्षेत्र को प्राथमिकता दी है और क्षेत्र में काल का अनुक्रम बांधा है। यह स्वीकार करते हुये तनिक भी नहीं हिचकता हूं कि प्रस्तुत इतिहास का प्रथम खण्ड प्राग्वाटज्ञाति का कोई इतिहास देने में सफल नहीं हो सका है। प्राग्वाटज्ञाति का सच्चा और इतिहास कहा जाने वाला वर्णन द्वितीय खण्ड में और तृतीय खण्ड में ही है । इन दोनों खण्डों के विषयों का वर्णन एक-सी निर्धारित रीति पर किया गया है । द्वितीय खण्ड के प्रारम्भ में 'वर्तमान जैन कुलों की उत्पत्ति', 'प्राग्वाट अथवा पौरवालज्ञाति और उसके भेद'-इन दो प्रकरणों के पश्चात् राजनीतिक्षेत्र में हुये मंत्री एवं दण्डनायकों और उनके यथाप्राप्त वंशों का वर्णन प्रारम्भ होता है। द्वितीय खण्ड में विक्रम की नवमी शताब्दी से लगा कर विक्रम की तेरहवीं शताब्दीपर्यन्त वर्णन है । इन शताब्दियों में जितने मंत्री, दण्डनायक अथवा यों कह दूं कि राजनीति और राज्यक्षेत्र में प्रमुखतः जितने उल्लेखनीय व्यक्ति इस इतिहास में आने वाले थे, वे सब कालं के अनुक्रम से एक के बाद एक करके वर्णित किये गये हैं और तत्पश्चात्
SR No.007259
Book TitlePragvat Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherPragvat Itihas Prakashak Samiti
Publication Year1953
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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