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________________ : प्रस्तावना: [ २१ सामग्री प्राप्त करने का पूरा २ प्रयत्न किया। पद्मावतीपौरवालज्ञातीय शिवनारायणजी से जिनसे पत्रों द्वारा पूर्व ही परिचय स्थापित हो चुका था, मिलना प्रमुख उद्देश्य था। सिरोहीराज्य में ब्राह्मणवाड़तीर्थ में वि० सं० १९६० में 'श्री अखिल भारतवर्षीय पोरवाड़-महासम्मेलन' का प्रथम अधिवेशन हुआ था। उस अवसर पर श्री शिवनारायणजी इन्दौर, ठाकुर लक्ष्मणसिंहजी देवास, समर्थमलजी सिंघवी सिरोही श्रादि साहित्यप्रेमियों ने प्राग्वाटइतिहास लिखाने का प्रस्ताव सभा के समक्ष उपस्थित किया था । सम्मेलन के पश्चात् भी इस दिशा में इन सज्जनों ने कुछ कदम आगे बढ़ाया था। परन्तु समाज ने इस ओर विशेष ध्यान नहीं दिया और उनकी अभिलाषा पूर्ण नहीं हो पाई। ठाकुर लक्ष्मणसिंहजी पौरवाड़ महाजनों का इतिहास' नामक एक छोटी-सी इतिहास की पुस्तक लिख चुके हैं। शिवनारायणजी 'यशलहा' इन्दौर ऐसा प्रतीत होता है इतिहास के पूरे प्रेमी हैं । उन्होंने प्राग्वाटज्ञातिसंबंधी सामग्री प्राग्वाट-दर्पण' नाम से कभी से एकत्रित करना प्रारंभ करदी थी। वह हस्तलिखित प्रति के रूप में मुझको उन्होंने बड़ी ही सौजन्यतापूर्ण भावनाओं से देखने को दी। मुझको वह उपयोगी प्रतीत हुई । विशेष बात जो उसमें थी, वह. पद्मावतीपौरवाड़संबंधी इतिहास की अच्छी सामग्री। मैंने उक्त प्रति को आद्योपांत पढ़ डाला और शिवनारायणजी से उक्त प्रति की मांग की। उन्होंने तुरन्त उत्तर दिया, 'मैं कई एक कारणों से प्राग्वाटज्ञाति का इतिहास लिखने की अपनी अभिलाषा को पूर्ण नहीं कर पाया, परन्तु अगर मैं किन्हीं भाई को, जो प्राग्वाट-इतिहास लिखने का कार्य उठा चुके हैं, अपनी एकत्रित की हुई साधन-सामग्री अर्पित कर सकूँ और उसका उपयोग हुआ देख सकूँ, तो भी मुझको पूरा २ संतोष होगा।' उन्होंने सहर्ष 'प्राग्वाट-दर्पण' को मेरे अधिकृत कर दिया और यह अवश्य कहा कि इसका उपयोग जब हो जाय, यह तुरन्त मुझको लौटा दी जाय । बात यथार्थ थी, मैंने सहर्ष स्वीकार किया और उनको अपने श्रम की अमूल्य वस्तु को इस प्रकार एक अपरिचित व्यक्ति के करो में उपयोगार्थ देने की अद्वितीय सद्भावना पर अनेक बार धन्यवाद दिया। पश्चात् मैंने उनसे यह भी कहा कि इसका मूल्य भी आप चाहें तो मैं सहर्ष देने को तैयार हूं। इस पर वे बोले 'क्या मैं पौरवाड़ नहीं हूं ? क्या मेरी ज्ञाति के प्रति मेरा इतना उत्तरदायित्व भी नहीं है ?' मैं चुप रहा। वस्तुतः शिवनारायणजी अनेक बार धन्यवाद के पात्र हैं । देवास-ता. १६ जनवरी को प्रातः टेक्सीमोटर से मैं देवास के लिए रवाना हुआ। 'पौरवाड़-महाजनों का इतिहास' नामक पुस्तक के लेखक ठाकुर लक्ष्मणसिंहजी देवास में रहते हैं । उनसे मिलना आवश्यक था । उक्त पुस्तक के लिख जाने के पश्चात् भी वे यथाप्राप्य सामग्री एकत्रित ही करते रहे थे। वह सब हस्तलिखित कई एक प्रतियों के रूप में मुझको देखने को मिली । जो-जो अंश मुझको उपयोगी प्रतीत हुये, मैंने उनको उद्धृत कर लिया " और उन्होंने भी सहर्ष उतारने देने की सौजन्यता प्रदर्शित की। ठाकुर लक्ष्मणसिंहजी जैसे इतिहास के प्रेमी हैं, वैसे चित्रकला के भी अनुपम रागी हैं । ज्ञाति के प्रति उनके मानस में बड़ी श्रद्धा है। उनके द्वारा प्राप्त सामग्री का इतिहास में जहाँ २ उपयोग हुआ है, वहाँ २ उनका नाम निर्देशित किया गया है । वस्तुतः वे भी अनेक बार धन्यवाद के पात्र हैं। धार-ता० १६ को ही दोपहर को इन्दौर के लिये लौटने वाली टेक्सीमोटर से मैं देवास से रवाना हो गया और इन्दौर पर धार के लिये जाने वाली टेक्सी के लिए बदली करके संध्या होते धार पहुँच गया। धार में
SR No.007259
Book TitlePragvat Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherPragvat Itihas Prakashak Samiti
Publication Year1953
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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