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________________ २२ ] :: प्राग्वाट - इतिहास :: श्री लालजी पौरवाड़ बड़े ही मिलनसार एवं प्रतिष्ठित सज्जन हैं। ये ठाकुर लक्ष्मण सिंहजी के संबन्धी हैं । ठाकुर साहब ने मुझको इनके नाम पर एक पत्र लिखकर दिया था। श्री गट्टूलालजी कई वर्षों से श्री माण्डवगढ़तीर्थ की देखभाल करते हैं और आप तीर्थ की व्यवस्था करने वाली कमेटी के प्रधान भी हैं। इनसे धार, राजगढ़, कुक्षी, अलिराजपुर, नेमाड़, मलकापुर आदि नगरों, प्रगणों में रहने वाले प्राग्वाटकुलों के विषय में बहुत अधिक जानने को मिला । माण्डवगढ़ -- ता० २० को मैं माण्डवगढ़ पहुँचा । श्री गट्टूलालजी ने तीर्थ की पीढ़ी के मुनीम के नाम पर पत्र भी दिया था । माण्डवगढ़ में अतिरिक्त एक छोटे से जिनालय के जैनियों के लिये और कोई आकर्षण की वस्तु नहीं है । उनको ही तीर्थ बनाकर माण्डवगढ़तीर्थ का गौरव बनाये रखने का तीर्थसमिति ने प्रयास किया है । रतलाम – माण्डवगढ़ से ता० २१ की प्रातः टेक्सी से धार और धार से इन्दौर और इन्दौर से दिन की ट्रेन द्वारा रतलाम आगया । रतलाम में इतिहास के लिये कोई वस्तु प्राप्त नहीं हुई । ता० २२ को संध्या की गाड़ी से प्रस्थान करके कोटा जाने वाली ट्रेन से महीदपुर पहुँचा । महीदपुर — यहां जागड़ा पौरवालों के अधिक घर हैं। उनके प्रतिष्ठित कुछ व्यक्तियों से मिला; परन्तु इस शाखा के विषय में अधिक उपयोगी वस्तु कोई प्राप्त नहीं हो सकी । गरोठ — महीदपुर से ता० २३ की प्रातः ट्रेन द्वारा गरोठ पहुँचा । गरोठ में जांगड़ा पौरवाड़ों के लगभग १०० से ऊपर घर हैं । गरोठ में श्रीमान् कंचनमलजी साहब बांठिया के यहां मेरा स्वसुरालय भी है। मैं वहीं जा कर ठहरा । एक पंथ दो कार्य । वहां के प्रतिष्ठित एवं अनुभवी पौरवाड़ सज्जनों से मिला और कई एक दंतकथायें सुनने को मिली; परन्तु प्रामाणिक वस्तु कुछ भी नहीं । मेलखेड़ा और रामपुरा - ता० २४ की प्रातः गरोठ से रवाना होकर प्रथम मेलखेड़ा गया, परन्तु जिन व्यक्ति से मिलना था, वे वहां नहीं थे; अतः तुरन्त ही लौटकर या गया और रामपुरा पहुँचा । 'पौरवाल बॉइल ब्रदर्स' के मालिक बाबूलालजी से मिला । आप अध्यापक भी रहे हैं। परन्तु यहां भी कोई ऐतिहासिक वस्तु जानने को नहीं मिली । ता० २५ को रामपुरा से बहुत भौर रहते चलने वाली टेक्सीमोटर से रवाना होकर नीमच पहुँचा और दिन को तीन बजे पश्चात् भीलवाड़ा पहुंचने वाली गाड़ी से भीलवाड़ा सकुशल पहुंच गया । जोधपुर-बीकानेर का भ्रमण भीलवाड़ा से ता० १६ अप्रेल सन् १५५२ को दोपहर पश्चात् अजमेर जाने वाली ट्रेन से रवाना होकर अजमेर होता हुआ स्टे० राणी पहुँचा । खुड़ाला और बाली - ता० २० को दिन भर स्टे० राणी ही ठहरा। रात्रि के प्रातः लगभग ४ बजे पश्चात् जाने वाली यात्रीगाड़ी से मैं और श्री ताराचन्द्रजी दोनों खुड़ाला गये । वहाँ वनेचन्द नवला जी का कुल प्राग्वाट
SR No.007259
Book TitlePragvat Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherPragvat Itihas Prakashak Samiti
Publication Year1953
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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