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:: प्राग्वाट - इतिहास ::
और हम अलग करें । तिस पर आप फिर सभा द्वारा निमंत्रित होकर आये हैं । उपस्थित जनों में से आगेवान इस बात पर दृढ़ प्रतिज्ञ हो गये और मुझको विवशतः उनके साथ ही भोजन करना पड़ा। उस व्यक्ति ने अपने प्रयत्न में अपने को असफल हुआ देखकर, प्रमुख २ जनों के समक्ष अपने बोले और किये पर गहरा पश्चात्ताप किया और सवालज्ञाति के सामाजिक स्तर से अपने को अनभिज्ञ बतला कर अपनी भूल प्रकट क ।
'जिन समाजों में ऐसे विरोधी प्रकृति के पुरुष अधिक संख्या में होंगे, वे समाज अभी अपनी उन्नति की आशायें लगाना छोड़ दें । उक्त घटना से मुझको किंचित् भी अपमान का अनुभव नहीं हुआ । सामाजिक क्षेत्र में कार्य करने वालों में तो ऐसी और इससे भी अधिक भयंकर और अपमानजनक परिस्थितियों का सामना करने की तैयारी होनी ही चाहिये | इतना अवश्य दुःख हुआ कि वैश्यसमाजों के भाग्य में अभी ग्रह बुरा ही पड़ा हुआ है और फलतः वे एक-दूसरे के अधिकतर निकट नहीं आ रही हैं ।
फिरोजाबाद - महमूदाबाद से ता० १५ अगस्त को मैं प्रस्थान करके वैद्य श्री विहारीलालजी के साथ में फिरोजाबाद आया । यहाँ जैन दिगम्बरमतानुयायी परवारज्ञाति के आठ सौ ८०० के लगभग घर हैं । मैं इस ज्ञाति के अनुभवी पंडितों, विद्वानों और वकीलों से मिला और उनकी ज्ञाति की उत्पत्ति का समय, उत्पत्ति का स्थान और दूसरे कई एक प्रश्नों पर उनसे बात चीत की। परवारज्ञाति का अभी तक नहीं तो कोई इतिहास ही बना है और नहीं तत्संबंधी साधन-सामग्री ही कहीं अथवा किसी के द्वारा संकलित की हुई प्रतीत हुई। फिरोजाबाद मैं ता० १६, १७, १८ तक ठहरा और फिर ता० १६ को वहां से रवाना होकर ता० २० अगस्त को रात्रि की गाड़ी से ३ बजकर २० मिनट पर भीलवाड़ा पहुँच गया ।
महमूदाबाद के इस अधिवेशन में भाग लेने से बहुत बड़ा लाभ यह हुआ कि संयुक्तप्रान्त - आगरा - अवध, बरार, खानदेश, अमरावती - प्रान्तों के अनेक नगर, ग्रामों से सम्मेलन में संमिलित हुये व्यक्तियों से मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ जो नगर - नगर, ग्राम-ग्राम जाने से बनता । अतः मैंने इस भ्रमण को संयुक्त प्रान्त - आगराव का भ्रमण कहा है।
मालवा प्रान्त का भ्रमण
भीलवाड़ा से मालवा - प्रान्त का भ्रमण करने के हित ता० १४ जनवरी ई० सन् १९५२ को प्रस्थान करके इन्दौर, देवास, धार, माण्डवगढ़, रतलाम, महीदपुर, गरोठ, रामपुरा आदि प्रमुख नगरों में भ्रमण करके पुनः मीलवाड़ा ता० २५ जनवरी को लौट आया था ।
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इन्दौर - भीलवाड़ा से दिन की गाड़ी से प्रस्थान करके दूसरे दिन इन्दौर संध्या समय पहुँचने वाली ट्रेन से पहुंचा । वहाँ शाह बौरीदास मीठालाल, कापड़ मार्केट, इन्दौर की दुकान पर ठहरा। इस फर्म के मालिक सेठ श्री छगनलालजी और उनके पुत्र मोट्ठालालजी ने मेरा अच्छा स्वागत किया । मेरे साथ जहाँ उनका चलना आवश्यक प्रतीत हुआ सेठजी साथ में श्राये । ता० १६ से ता० १६ तक तीन दिवसपर्यन्त वहाँ ठहरा । अनेक अनुभवी प्रज्ञातीय सज्जनों से मिला और मालवा में रहने वाले प्राग्वाटकुलों के संबंध में इतिहास की