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________________ :: प्रस्तावना:: के एक कोने की ओर चले। उस कोने में कुछ कुल्हाड़ियां, एक बल्लम, एक कटार और ऐसे ही कुछ और हथियार पड़े थे। बाबाजी उनमें से एक कुल्हाड़ी उठा लाये और मेरे सामने आकर उसको मेरे शिर. पर तान कर बोले, 'मारता हूं अभी, मुझको झूठा और क्रोधी कहने वाले को।' मैं उसी प्रकार स्थिर और शांत बैठा रहा। मेरा साथी और वे नवागन्तुक दोनों बीकानेरी पुरुष देखते रह गये, यह क्या से क्या हो गया। मैंने कहा, 'महाराज ! सत्य पर झूठ आक्रमण करता ही है, इसमें आश्चर्य और नवीन बात कौन सी; परन्तु हार झूठ की ही होती है। आप में अगर कुछ भी सत्यांश होता, यह आपकी कुल्हाड़ी अब तक.अपना कार्य कर चुकी होती, लेकिन आप मुझको पूछ जो रहे हैं, यह झूठ का निष्फल प्रयास है।' बस इतना कह कर मैं भी फिर कुछ नहीं बोला। बाबाजी एक दो मिनट उसी क्रोधपूर्णमुद्रा में कुल्हाड़ी ताने खड़े रहे और फिर जाकर अपने आसन पर बैठ गये। तीन, चार मिनट व्यतीत होने पर मैं उठा और यह कह कर, 'बाबाजी ! मैं तुमको साधु समझ कर तुम से मिलने आया था, परन्तु निकले तुम पर धर्म के द्वेषी और पूरे पाखण्डी ।' 'राम राम' कह कर मैं गुफा से बाहर निकल आया। मेरा साथी भी मेरे ही पीछे उठ कर बाहर आगया। हम दोनों इस विचित्र एवं अनोखी घटना पर चर्चा करते हुये आबूकम्प गये और वहां बंगाली बाबा की पोपलीला का मोटर-स्टेन्ड पर खड़े हुये सैकड़ों स्त्री-पुरुषों के वीच भंडा-फोड़ किया और फिर वहाँ से लौट कर संध्या होते २ देलवाड़ा की जैनधर्मशाला में लौट आये और प्रेरणा देने वाले साथियों से यह सब कह सुनाया; परन्तु उन अंधभक्तों को इसमें कुछ निमक-मिर्च मिलासा ही लगा, ऐसा मेरा अनुभव है। यह चर्चा आबूकैम्प और देलवाड़े में सर्वत्र फैल गई। दो दिन के बाद में सुना कि वर्षों से वहां रहने वाला वह बंगाली बाबा कहीं चला गया है। विमलवसति और लूणसिंहवसति तथा भीमवसति मंदिरों का अध्ययन करके जो सामग्री उद्धृत की तथा उसके आधार पर जो उन पर लिखा गया वह इतिहास में पढ़ने को मिलेगा ही; अतः सामग्री के विषय में यहां कुछ भी कहना मैं अनावश्यक तो नहीं समझता, परन्तु फिर भी उसको लम्बा विषय समझ कर, उसको आगे के लिये यहां छोड़ देना चाहता हूँ। अचलगढ़-ता० २६ जून की प्रातः वेला में मैं मोटर द्वारा अचलगढ़ की ओर चला । मार्ग में गुरुशिखर की चोटी के दर्शन किये और वहां से लौट कर संध्या होते २ अचलगढ़ मोटर द्वारा पहुंचा। ता० ३० जून को वहां ठहरा और प्राग्वाटज्ञातीय मं० सहसा द्वारा विनिर्मित श्री चतु मुखादिनाथ-जिनालय के दर्शन किये और उसका शिल्प की दृष्टि से परिचय तैयार किया। अन्य मन्दिरों से भी प्राप्त होने वाली सामग्री एकत्रित की और यह सर्व कार्य करके ता० ३० जून की संध्या को ही देलवाड़ा पुनः लौट आया । गिरनार-ता० १ जुलाई को देलवाड़ा से प्रातःकाल रवाना होकर आबूस्टेशन से सवेरे की गाड़ी से गिरनार के लिये चला । ता० २ जुलाई से ता० ४ तक जूनागढ़ ठहरा । पीढ़ी की सौजन्य से मुझको गिरनारगिरिस्थ 'श्री वस्तुपाल-तेजपाल टू'क' का अध्ययन करने की पूरी २ सुविधा मिल गई । इतिहास के योग्य सामग्री एकत्रित करके यहां से ता०४ को प्रभासपत्तन के लिये रवाना हो गया। 'वस्तुपाल-तेजपाल 'क' का सविस्तार विवरण तथा अन्य प्राग्वाटबन्धुओं के प्रचुरण कार्यों का यथासंभव लेख यहां तैयार कर लिया था।
SR No.007259
Book TitlePragvat Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherPragvat Itihas Prakashak Samiti
Publication Year1953
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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