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________________ गृहपति की मध्यस्थता तनिक भी आवश्यक प्रतीत नहीं होती। किसी कार्य में शिथिलता एवं म्यूनता पार्ने पर छात्र गुण खोता है तथा सद्व्यवहार पूर्ण समयोचित कार्य संपन्न करने पर उसे गुण प्राप्त होते हैं । स्पर्धा की इस शुद्ध प्रणाली द्वारा गुण विवरण करने वाली गुणपत्रिका (Matks-Register) भी मैंने देखी । सुव्यवस्था एवं छात्रों की अन्तरस्फूर्ति के कारण छात्रावास में शांति का वातावरण है। स्वास्थ्य, व्यायाम तथा चरित्र जीवन के तीन मुख्य स्तम्भों पर आधारित छात्रों का जीवन कुल निर्मित है। मुझे पूर्व आशा है नवयुग की नवराष्ट्र-साधना में यह छात्रावास देश के शिक्षा-इतिहास में अपना एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त करेगा। स० वी० कुम्भारे मेरे भाग्य में छात्रालय में वृद्धिंगत होते अनुशासन की शांति का आनन्द लेना और इतिहास-कार्य को सुचारु रूप से करना थोड़े ही महिनों के लिये लिखा था। ज्योंही मैंने आंतरिक व्यवस्था की ओर ध्यान दिया कि मेरे और वहां कमेटी की ओर से सदा रहने वाले मंत्रीजी में विचार नहीं मिलने के कारण कटुता बढ़ने लगी। मैंने जो किया, वह उन्होंने काटा और नहीं काट सके तो उसको हानि तो पहुँचाई ही सही। इसी गतिविधि से अब मेरा जीवन वहां चलने लगा। कई बार लोगों ने हम दोनों को समझाया, कमेटी के कुछ प्रतिष्ठित सम्यों ने एकत्रित होकर हमारी दोनों की बातें सुनीं । हमारे दोनों के बीच दो बार समझोते हुये । परन्तु सब व्यर्थ । आप अब उक्त पंक्तियों के संदर्भ पर समझ ही गये होंगे कि सुमेरपुर के छात्रालय में यद्यपि मैं ई० सन् १६४७ अप्रेल ६ से ई० सन् १९५० नवम्बर ६ तक पूरे ३ वर्ष ७ मास और १ दिन रहा; परन्तु इतिहास का कार्य कितना कर सका होऊँगा ? जितना किया उसका विवरण निम्नवत् दिया जाता है। पूर्व के पृष्ठों में लिख चुका हूँ कि इतिहास-कार्य को आधे दिन की सेवा मिलती थी। इस दृष्टि से ३ वर्ष ७ मास और एक दिन की अवधि में इतिहास का पूरे दिनों का कार्य १ वर्ष मास और १५ दिन पर्यन्त हुआ समझना चाहिए | और वह भी ऊपर वर्णित परिस्थिति में।। सुमेरपुर छोड़ा तब तक साधन-सामग्री में लगभग ३१८ पुस्तकों का संग्रह हो चुका था । १५० पुस्तकों का अध्ययन तो बागरा में ही किया जा चुका था, शेष का अध्ययन सुमेरपुर में हुआ और उनमें प्राप्त सामग्री को चिह्नित, उद्धृत, संक्षिप्त रूप से उल्लिखित तथा निर्णीत की गई। श्री मुनि जिनविजयजी, श्री मुनि जयन्तविजयजी, श्री पूर्णचन्द्रजी नाहर आदि द्वारा प्रकाशित शिला-लेख-पुस्तकों में से प्राग्वाटज्ञातीय शिला-लेखों की छटनी की गई और उनका काल-क्रम, व्यक्तिकम से वर्गीकरण किया गया ! महामन्त्री पृथ्वीकुमार, धरणाशाह आदि के चरित्र लिखे गये । महामन्त्री वस्तुपाल, तेजपाल, विमलशाह के चरित्रों को पूर्णता दी गई । इस ही समय में महामना प्रसिद्ध इतिहासन्न पं. गौरीशंकर ओझा और प्रसिद्ध पुरातत्ववेचा जैन पंडित श्री लालचन्द्र भगवानदास, बड़ौदा से श्री ताराचन्द्रजी ने पत्र-व्यवहार करके उनकी सहयोगदायी सहानुभूति प्रसिद्ध इतिहासजी से पत्र प्राप्त की और फलतः मेरा उनसे पत्र-व्यवहार प्रारंभ हुआ। अखिल भारतवर्षीय कांग्रेस व्यवहार और भेट तथा के सन् १६४८ के नवम्बर मास में जयपुर में होने वाले अधिवेशन में कार्य-कर्ता के श्री पं० लालचन्द्र भगवान रूप से मैं जिला कांग्रेस कमेटी, शिवगंज की ओर से भेजा गया था। वहाँ मैंने दास से विशेष संपर्क. नवम्बर से २१ नवम्बर तक Ticket selling in-charge-officer का काय किया था। जयपुर से लौटते समय प्रसिद्ध पुरातत्ववेत्ता सुमि जिनविजयजी से मिला था और इतिहास के विषय में कई एक
SR No.007259
Book TitlePragvat Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherPragvat Itihas Prakashak Samiti
Publication Year1953
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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