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________________ ४ 1 :: प्राग्वाट - इतिहास :: ऐसा प्रत्येक विभाग उन्हीं पुरुषों के अधिकार में देना पड़ेगा कि उस विभाग में आने वाले विषयों से उनका परम्परित सम्बन्ध रहा होगा । समझिये हम भारतवर्ष का ही सर्वाङ्गीण इतिहास लिखने बैठें। ऐसे सर्वाङ्गीण इतिहास में भारतवर्ष में रही हुई सर्वज्ञातियों को स्थान मिलेगा ही । विषयों की छटनी करने के पश्चात् कुल, ज्ञाति, वंशों के नामोल्लेख करके ही हम भूतकाल में हुए महापुरुषों के वर्णन लिखने के लिये बाधित होंगे। जैसे वीरों के अध्याय में भारतभर के समस्त वीरों को यथायोग्य स्थान मिलेगा ही, फिर भी वह वीर क्षत्रिय था, ब्राह्मण था वैश्य था अथवा अन्य ज्ञाति में उत्पन्न हुआ था - का उल्लेख उसके कुल का परिचय देते समय तो करना ही पड़ेगा | कुल का परिचय देते समय भी वह क्षत्रिय था अथवा अमुक ज्ञातीय - इतना लिख देने मात्र से अर्थ सिद्ध नहीं होगा । वह रघुवंशी था अथवा चन्द्रवंशी । फिर वह शीशोदिया कुलोत्पन्न था अथवा चौहान, राठोड़, परमार, तौमर, सोलंकी इत्यादि । अब सोचिये ज्ञातिभेद के विरोधी इतिहासप्रेमी और इतिहासकार को जब उक्त सब करने के लिये बाध्य होना अनिवार्य्यतः प्रतीत होता है, तब सीधा क्षत्रिय, वैश्य, ब्राह्मणाति का इतिहास लिखने में अथवा किसी पेटाज्ञाति का इतिहास लिखने में जो अपेक्षाकृत सहज और सीधा मार्ग है फिर थानाकानी क्यों । मैं तो इस परिणाम पर पहुँचा हूं कि प्रत्येक पेटाज्ञाति अथवा ज्ञाति अपना सर्वांगीण एवं सच्चे इतिहास का निर्माण करावे और फिर राष्ट्र के उत्तरदायी महापुरुष ऐसे ज्ञातीय इतिहासों की साधन-सामग्री से अपने राष्ट्र का सर्वांगीण इतिहास लिखवाने का प्रयत्न करे तो मेरी समझ से ये पगडंडियां अधिक सफलतादायी होंगी और राष्ट्र का इतिहास जो लिखा जायगा, उसमें अधिक मात्रा में सर्वांगीणता होगी और ज्ञातिभेद को पोषण देनेवाली अथवा उसका समर्थन करने वाली जैसी कोई वस्तु उसमें नहीं होगी। राष्ट्र के अग्रगण्य नेता जब भी भारतवर्ष का इतिहास लिखवाने का प्रयत्न प्रारम्भ करेंगे, उनको उपरोक्त विधि एवं मार्ग से कार्य करने पर ही अधिक से अधिक सफलता प्राप्त हो सकती है । ऐसा विचार करके ही मैंने यह प्राग्वाटज्ञाति का इतिहास लिखने का कार्य स्वीकृत किया है। कि मेरा यह कार्य भारत के सर्वांगीण इतिहास के लिये साधन-सामग्री का कार्य देगा और इसमें आये हुए महापुरुषों को और अन्य ऐतिहासिक बातों को तो कैसे भी हो सहज में न्याय मिलेगा ही और सर्वांगीण इतिहास लेखकों का कुछ तो श्रम, समय, अर्थव्यय कम होगा ही । मैं जितना काव्य और कविता का प्रेमी हूँ उतना ही इतिहास का पाठक भी । रूस, चीन, जापान, फ्रांस, इटली, इङ्गलैण्ड आदि आज के समुन्नत देशों के कई प्राचीन और अर्वाचीन इतिहास पढ़े और उनसे मुझको अनेक भांत २ की प्रेरणायें और भावनायें प्राप्त होती रहीं । प्रमुख भाव जो मुझ को सब से प्राप्त हुआ वह यह है कि हमारे भारत के इतिहास में सर्वसाधारण ज्ञातियों के साथ में भारतवर्ष के इतिहास में अब तक जैनज्ञाति को न्यायोचित स्थान नहीं मिला न्याय नहीं वर्ता गया । जहाँ पाश्चात्य देशों के इतिहासों में बिना भेद-भाव के इतिहास के पृष्ठों की शोभा बढ़ाने वाले प्रत्येक व्यक्ति, वस्तु विशेष को स्थान ससंमान प्रदान किया गया है, वहाँ हम आज से १० वर्ष पूर्व लिखा गया भारतवर्ष का कोई भी छोटा-बड़ा इतिहास उठा कर देखें तो उसमें अतिरिक्त क्षत्रिय राजा और मुसलमान बादशाहों के वर्णनों के और कुछ नहीं मिलेगा । क्षत्रियज्ञाति के साथ ही साथ भारत में ब्राह्मण, वैश्य और शूद्रज्ञातियां भी रहती आई हैं। ये भी समुन्नत हुई हैं और गिरी भी हैं । इन्होंने भी भारत के उत्थान और पतन में अपना भाग भजा है। इनमें भी अनेक वीर, संत, श्रीमंत, दानवीर, अमात्य, महामात्य, बलाधिकारी, महाबलाधिकारी, बड़े २ राजनीतिज्ञ, दंडनायक, संधिविग्रहक, बड़े २ व्यापारी, देशभक्त, धर्मप्रवर्त्तक,
SR No.007259
Book TitlePragvat Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherPragvat Itihas Prakashak Samiti
Publication Year1953
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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