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खण्ड ] :: श्री जैन श्रमणसंघ में हुये महाप्रभावक आचार्य और साधु-लोंकागच्छ-संस्थापक श्रीमान् लोकाशाह :: [ ३५६
माता-पिता का स्वर्गवास होते ही उसी वर्ष होनहार लोकाशाह अरहटवाड़ा का त्याग करके अपनी स्त्री आदि के सहित अहमदाबाद चले गये और वहाँ जवेरी का धन्धा करने लगे । उन दिनों अहमदाबाद में मुहम्मदअहमदाबाद में जाकर बसना शाह 'जार बक्स' नामका बादशाह शासन करता था। कुशल लोकाशाह की जवेहऔर वहाँ राजकीय सेवा रात परखने की कुशलता एवं ईमानदारी की प्रशंसा बादशाह के कर्गों तक पहुँची और करना
__ बादशाह ने लोकाशाह को अपने यहाँ नवकर रख लिया। वि० सं० १५०८ में बादशाह मुहम्मदशाह मार डाला गया और उसके स्थान पर उसका पुत्र कुतुबुद्दीन बादशाह बना। राजसभा में खट-पट और षड़यन्त्र चलते ही रहते थे । निदान लोंकाशाह ने भी कुछ वर्षों के पश्चात् राज्यकार्य से त्याग-पत्र दे दिया।
लोकाशाह बहुत ही सुन्दर अक्षर लिखते थे। बड़गच्छीय एक यति आपका सुन्दर लेख देख कर आप पर अति ही प्रसन्न हुये और आपको अपने यहां वि० सं० १५२६ में लेखक रख लिया। लोंकाशाह जिस प्रति को लोकाशाह द्वारा लहिया लिखते, उसकी दो प्रतियाँ बनाते थे । एक प्रति आप रख लेते और दूसरी प्रति यतिजी का कार्य और जीवन में को दे देते । लोकाशाह की इस युक्ति का पता किसी प्रकार यतिजी को लग गया परिवतेन
और दोनों में अनबन हो गई । फलतः लोंकाशाह ने वहाँ से नवकरी का दो वर्ष पश्चाद ही वि० सं० १५२८ में त्याग कर दिया ।
प्रतियों के लिखने से बुद्धिमान् लोंकाशाह को शास्त्रों का अध्ययन करने का अच्छा अवसर मिल गया और आपको अच्छा ज्ञान हो गया तथा कर्तव्याकर्तव्य का भान हो गया।
स्थानकवासी संप्रदाय के विक्रम की अठारहवीं शताब्दी में हुये क्रमशः सोलहवें और सत्रहवें पूज्य श्री तेजसिंह और कानजी द्वारा कृत 'गुरुगुणमाला' की ११ ग्यारहवी दाल में लिखा है:
'पोरवाड़ प्रसिद्ध पाटण में 'लका' नामे 'लुका' कहाई-लके' ॥१॥ संवत् पनर अठयावीसे, बड़गच्छ सत्र सिद्धान्त लिखाई। लिखी परति दोई एक आप राखी, एक दी गुरु ने ले जाई ।।२।। दोय वरस सूत्र अर्थ सर्व समजी, धर्म विध संघ ने बताई । 'लके' मूल मिश्यात उथापी, देव गुरु धर्म समजाई ॥३॥ 'त्रीसे वीर' रासी भष्मग्रह उतरता, जिम'वीर' कहयौ तिम थाई । उदे उदे पूज्या जिनशासन नीति दयाधर्म दीपाई ॥४॥ 'ईगत्रीसें भाणजीए' संजम लेई, 'लुकागच्छ' 'आदिजति थाई । 'लुकागच्छ नी उतपति ईण विध, कहे 'तेजसंघ' समझाई' ५
__ जै० गु० क० भा०३ खं० २ पृ० २२०५ मुनि श्री तेजसिंहजी भी स्वीकार करते हैं कि पति और लोकाशाह के मध्य वि० सं०१५२८ में खटपट हुई । लोकाशाह के जीवन में दिशापरिवर्तन का प्रमुख कारण उक्त खटपट ही है यह सिद्ध हो जाता है।
'लोकामत निराकरण' चौ० सं०१६२७ चै०१० ५ रवि. दादानगर में 'अहिल्लपुर पाटण गुजरात, महाजन वसई चउरासी न्यात । लघु शाखी ज्ञाति पोरवाड़, 'लोको' सोठि लीहो छि घाल ॥१॥ ग्रंथ संख्या नई कारणे वढयो, जैन यतिस् बहु चिड़भडियो । 'लोंके लीहे कीधा भेद, धर्म तणा उपजाया छेद ॥२॥ शास्त्र जाणे सेतंबर तणा, कालई बल दीधा आपण।। प्रतिमा पूजा छेद्या दान, धर्मतणी तेणई कीधी हाणि ॥३॥ . संवत् 'पचर सत्तावीस,' 'लोंकामत' उपना कहीस ++ | गाथा पदनो कीधो फेर, विवेकधरी सांभलिज्यो फेर ॥४॥
जै० गु० क० भा० ३ खं०१ पृ०७११. उक्त चौपाई में से यहाँ इतना ही ग्रहण करना है कि लोकाशाह और यति के मध्य वि० सं० १५२७ में खट-पट हुई, लोकाशाह यतिवर्ग के विरोधी बने और समय भी उनको अनुकूल प्राप्त हुआ।