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खण्ड
: श्री जैन श्रमण-संघ में हुये महाप्रभावक प्राचार्य और साधु-तपागच्छीय श्रीमद् सोमविमलसूरि :: [३३६
वाचकपद प्रदान किया । वणछरा के श्रीसंघ ने श्री वाचकपदोत्सव बड़ी ही शोभा और समृद्धि से सम्पन्न किया था।
वणछरा से विहार करके आपश्री आम्रपद (ग्रामोद) नामक नगर में पधारे। वहाँ पर श्रे० सं० मांडण द्वारा आयोजित उत्सवपूर्वक मुनि विद्यारत्न और विद्याजय को आपने बिबुध की पदवी प्रदान की । वि० सं० १६०२ में आपका चातुर्मास अहमदाबाद में, वि० सं० १६०३ में बागड़देश के गोलनगर में, वि० सं० १६०४ में ईडर में और तत्पश्चात् वि० सं० १६०५ में आपका चातुर्मास खंभात में हुआ। वि० सं० १६०५ माघ शु. ५ को श्री संघ ने आपको खंभात में बड़ा भारी महोत्सव करके भारी जनसमूह के समक्ष गच्छाधीशपद से अलंकृत किया।
वि० सं० १६०८ में आपने चातुर्मास राजपुर में किया और वि० सं० १६०६ में हबिदपुर में किया । हबिदपुर में आपने मासकल्प किया था । वि० सं० १६१० में आपका चातुर्मास अणहिलपुरपत्तन में हुआ । पत्तन अन्य चातुर्मास और गच्छ में आपश्री ने वि० सं० १६१० वै० शु० ३ को चौठिया अमीपाल द्वारा कारित की विशिष्ठ सेवा
प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा की। वि० सं० १६१७ में आपका चातुर्मास अक्षयदुर्ग नामक नगर में हुआ। आश्विन शु. १४ को आपने वहाँ अशुभसूचक शकुन देख कर संघ को चेताया कि दुर्ग का भंग होगा।
आपकी बात को स्वीकार करके संघ ने आपके सहित हाथिलग्राम में कुछ दिनों के लिये निवास किया। वहाँ से थोड़े अंतर पर हुँडप्रद नामक ग्राम में मरकी का प्रकोप उठा । आपश्री हुँडप्रद पधारे और मरकीरोग का निवारण किया । वि० सं० १६१६ में आपका चातुर्मास पुनः खंभात में हुआ और सं० १६२० में दरबार नामक ग्राम में हुआ । वहाँ से विहार करते हुये आप अनेक नगरों में विचरे और संघों का रोग, भय दूर करते हुये धर्म का प्रभाव फैलाते रहे । वि० सं० १६२३ में आपका चातुर्मास अहमदाबाद में था। वहाँ आपने छः विगय का अमिग्रह लिया और उनको पूर्ण किया। ____ इस प्रकार धर्म-प्रचार और गच्छ की प्रतिष्ठा बढ़ाते हुये वि० सं० १६३७ मार्गशिर मास में आपका स्वर्गवास हो गया । आपने अपने करकमलों से लगभग २०० दो सौ साधु-दीक्षायें दी और अनेक जिनबिंबों की स्वर्गारोहण और आपका प्रतिष्ठायें की । आपको अनेक पदवियाँ जैसे अष्टावधानी, इच्छालिपिवाचक, महत्व
वर्धमानविद्यासरिमंत्रसाधक, चौर्यादिभयनिवारक, कुष्ठादिरोगनिवारक, कल्पसूत्रटबार्थादिबहुसुगम-ग्रन्थकारक, शतार्थविरुदधारक प्राप्त थीं।
आपकी लिखी हुई कुछ प्राप्त कृतियों के नाम निम्न प्रकार है :१-श्रेणिकरास-जिसको आपने सं० १६०३ में लिखा था। २-चंपकवेष्ठिरास-जिसको आपने विराटनगर में सं० १६२२ श्रावण शु०७ को लिखा था। ३-क्षुल्लककुमाररास-जिसको आपने अहमदाबाद में वि० सं० १६३३ भाद्र कृ. ८ को लिखा था। ४–धम्मिलकुमाररास, ५ कल्पसूत्र-बालबोध, ६ दक्षदृष्टान्त-गीता आदि ।
जै० गु०क० भा० २०७४५ पर आपका दीक्षा सं०१५७४ लिखा है। मुझको यह प्रमात्मक प्रतीत होता है। खं० प्रा० ० इति० पृ०६५.