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: प्राग्वाट-इतिहास:
[तृतीय
तपागच्छीय श्रीमद् सोमविमलसूरि गणिपद वि० सं० १५६०. स्वर्गवास वि० सं० १६३७
खंभात के समीप में कंसारी नामक ग्राम में प्राग्वाटज्ञातीय वृद्ध मंत्री समघर के परिवार में मंत्री रूपचन्द्र की स्त्री अमरादेवी की कुषि से वि० सं० १५७० में एक पुत्ररत्न का जन्म हुआ । अल्पवय में ही उसने हेमविमलवंश-परिचय, दीक्षा और सूरि के करकमलों से अहमदाबाद में दीक्षा ग्रहण की और सोमविमल नाम धारण प्राचार्यपद
किया। दीक्षा-महोत्सव सं० भूभच जसदेव ने बड़ी धूम-धाम से सम्पन्न किया था । कुशाग्रबुद्धि होने के कारण आपने थोड़े वर्षों में ही शास्त्रों का अच्छा अभ्यास कर लिया और व्याख्यानकला में भी निपुणता प्राप्त करली । फलस्वरूप आपको खंभात में सं० १५६० फा. कृ. ५ को प्राग्वाटज्ञातीय कीका द्वारा आयोजित महोत्सवपूर्वक गणिपद प्राप्त हुआ।
वि० सं० १५६४ फा० कृ. ५ को शिरोही में गांधी राणा जोधा द्वारा आयोजित महामहोत्वपूर्वक श्रीमद् सौभाग्यहर्षसूरि ने आपको पंडितपद प्रदान किया। तत्पश्चात् आपने अजाहरी में शारदा की आराधना की और शारदा को प्रसन्न करके उससे वर प्राप्त किया। वहाँ से विहार करके आप गुरु के साथ में विद्यापुर आये। विद्यापुर में आपको जनमेदनी के समक्ष वि० सं० १५६५ में वाचकपद से अलंकृत किया गया। श्रेष्ठि दो तेजराज मांगण ने उत्सव में बहुत द्रव्य व्यय किया था।
विद्यापुर से विहार करके आप वि० सं० १५६७ में अहमदाबाद आये । अहमदाबाद में श्रीमद् सौभाग्यहर्षसरि ने आपको सरिपद प्रदान किया। चतुर्विधसंघ के अधिनायक रूप से आपश्री ने तीर्थों की कई वार यात्रायें की थीं। कुछ एक का यथाप्राप्त संक्षिप्त परिचय निम्नवत् है ।
_ विद्यापुरनिवासी दो० तेजराज मांगण ने वि० सं० १५६७ में ही आपश्री के साथ में अनेक ग्रामों के संघों के सहित चार लक्ष रुपयों का व्यय करके प्रमुख तीर्थों की संघयात्रा की थी। इस संघ में भिन्न २ गच्छों के अन्य ३०० साधु सम्मिलित हुये थे।
वि० सं० १५६६ में आपका चातुर्मास अणहिलपुरपत्तन में हुआ। वि० सं० १६०० में पत्तन के श्री संघ ने आपश्री के साथ में विमलाचल और रैवंतगिरितीर्थों की यात्रा की ।
उक्त यात्रा के पश्चात् श्राप विहार करते हुए दीवबंदर पधारे और वहाँ वि० सं० १६०१ चै० शु: १४ को अभिग्रह धारण किया। अभिग्रह के पूर्ण होने पर आपश्री शजय की यात्रा को पधारे। शत्रुजय की तृतीय
यात्रा करके आप विहार करते हुये धौलका, खंभात जैसे प्रसिद्ध नगरों में होते हुए गच्छाधीशपद की प्राप्ति
कान्हमदेश में वणछरा नामक ग्राम में पधारे। वहाँ आपने आणंदप्रमोद मुनि को "बोजामती" नाम्ना मतं प्रवर्तितं तथा वि० द्विसप्तत्यधिकपंचदशशत १५७२ वर्षे नागपुरीय तपागणानिर्गत्य उपाध्यायपाशवचन्द्रेश स्वनाम्ना मतं प्रादुष्कृतमिति' ॥१॥ त०५० स० पृ० ६७,६८, ६६ (तपा० पट्टावली)