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________________ :: भूमिका अत्यन्त प्राचीन ज्ञात होता है । ज्ञाति के बाद कुल और उसके बाद गोत्र और तदनन्तर नाम का स्थान है। ज्ञाति समुच्चयवादी है। कुल, गोत्र एवं नाम उसके क्रमशः छोटे छोटे भेद-प्रभेद हैं। ज्ञाति का पश्चात्वर्ती शब्द 'कुल' है और उसको पितृ-पक्ष' से सम्बन्धित बतलाया गया है । मूलतः मानव सभी एक हैं, इसलिये समुच्चय की दृष्टि से उसे मनुष्यज्ञाति कहा जाता है। कुल की उत्पत्ति जैनागमों के अनुसार सर्वप्रथम प्रथम तीर्थकर ऋषभदेव से हुई । 'वसुदेव-हिन्डी' नामक प्राचीन जैन कथाग्रंथ में भगवान् ऋषभदेव का चरित्र वर्णित करते हुए कहा गया है कि जब ऋषभकुमार एक वर्ष के हुये तो इन्द्र वामन का रूप धारण कर ईक्षुओं का भार लेकर नाभि कुलकर के पास आये। ऋषभकुमार ने ईक्षुदण्ड को लेने के लिये अपना दाहिना हाथ लम्बा किया। उससे इन्द्र ने उनकी इच्छा ईक्षु के खाने की जान कर उनके वंश का नाम 'ईक्ष्वाकु' रक्खा । फिर ऋषभदेव ने राज्यप्राप्ति के समय अपने आत्मरक्षकों का कुल 'उग्र', भोग-प्रेमी व्यक्तियों का कुल 'भोग', समवयस्क मित्रों का कुल 'राजन्य' और आज्ञाकारी सेवकों का कुल 'नाग' इस प्रकार चार कुलों की स्थापना की। जैनागम 'स्थानाङ्ग' के छठे स्थान में छः प्रकार के कुलों को आर्य बतलाया है। उग्र, भोग, राजन्य, ईस्वाकु, ज्ञात और कौरव यथाः ____ 'छव्विहा कुलारिया मणुस्सा पन्नत्ता तंजहा उग्गा, भोगा, राइन्ना, इक्खागा, नाया, कोरवा' (सूत्र ३५) इसी स्त्र में छःही प्रकार की ज्ञाति आर्य बतलायी गयी है । अम्बष्ठ, कलिन्द, विदेह, विदेहगा, हरिता, चंचुणा ये छः इभ्य ज्ञातिया हैं : 'व्विहा जाइ अरिया मणुस्सा पन्नत्ता तंजहा=अम्बट्ठा, कलिन्दा, विदेहा, वेदिहगाइया, हरिया, चंचुणा भेदछव्विया इब्भ जाइओ' (सूत्र ३४) ___ 'वसुदेवहिन्डी' में समुद्रविजय और उग्रसेन के पूर्वजों की परम्परा बतलाते हुये 'हरिवंश' की उत्पत्ति का प्रसंग संक्षेप से दिया है । उसके अनुसार हरिवर्षक्षेत्र से युगलिक हरि और हरणी को उनके शत्रु वीरक नामक देव ने चम्पानगरी के ईक्ष्वाकुकुलीन राजा चन्द्रकीर्ति के पुत्रहीन अवस्था में मरजाने पर उनके उत्तराधिकारी रूप में स्थापित किया । उस हरि राजा की संतान 'हरिवंशी' कहलायी। 'कल्पसूत्र' में चौवीस तीर्थङ्करों के कुलों का उल्लेख करते हुये इक्कीस तीर्थङ्कर ईक्ष्वाकुकुल में और काश्यपगोत्र में उत्पन्न हुये। दो तीर्थङ्कर हरिवंशकुल में और गौतमगोत्र में उत्पन्न हुये । तदनन्तर भगवान् महावीर स्वामी नाय (ज्ञात) कुल में उत्पन्न हुये। उनका गोत्र अवतरण के समय उनके पिता ऋषभदत्त ब्राह्मण का कोडालसगोत्र और उनकी माता देवानन्दा का जालंधरगोत्र बतलाया है। तदनन्तर गर्भापहरण के प्रसंग में इन्द्र ने कहा है कि अरिहंत, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव उग्न, भोग, राजन्य, ईक्ष्वाकु, क्षत्रिय, हरिवंश इन कुलों में हुआ करते हैं; क्योंकि ये विशुद्ध ज्ञाति, कुल, वंश माने गये हैं । वे अंतकुल, पंतकुल, तुच्छकुल, दरिद्रकुल, भिक्षुककुल, ५. पैतृके पक्षे नि० कुलं पेयं माइया जाई (उत्तराध्ययन) गुणवत् पितृकत्वे (स्थानांगवृत्ति) ६. महाभारत में लिखा है : एकवर्णमिदं पूर्व विश्वमासीयुधिष्ठिरः । कर्मक्रियाविशेषेण चातुवर्य प्रतिष्ठितम् ॥ सवै योनिजा मा सर्वे मूत्रपरिषिणः। एकद्वयेन्द्रियार्थास्थ तस्मादशीलगुणो द्विजः।।
SR No.007259
Book TitlePragvat Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherPragvat Itihas Prakashak Samiti
Publication Year1953
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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