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________________ प्राग्वाट-इतिहास: रुपणकल और ब्राह्मणकूलों में उत्पन्न नहीं होते। फिर इन्द्र के आदेश से हरणिगमेशी देव गर्भरूप महावीर को काश्यपगोत्रीय सिद्धार्थ और सिद्धार्थ की पत्नी वाशिष्ठ गोत्र की त्रिशला की कुक्षी में संक्रमण करता है। यहां तीर्थङ्करों के कल के नामों के साथ उनके गोत्र का भी उल्लेख मिलता है। इससे उस समय 'गोत्र' भी बहुत महत्त्व का स्थान पा गया था स्पष्ट है। प्रभावशाली व्यक्तिविशेष की संतान का गोत्र उसके पूर्वज के नाम से प्रसिद्ध होता है । जैसे वशिष्ठ ऋषि की संतान को वाशिष्ठ गोत्र की संज्ञा मिली । 'स्थानाङ्ग' सूत्र के अनुसार मूल गोत्र सात थे। काश्यप, गौतम, वत्स, कुत्स, कौशिक, मण्डप और वाशिष्ठ । फिर क्रमशः एक-एक गोत्र में अनेक विशिष्ट व्यक्ति हुये, जिनकी संतति का गोत्र उनके नाम से प्रसिद्ध हुआ। 'स्थानाङ्ग' में उपर्युक्त सात गोत्रों में से प्रत्येक के सात २ भेद बतलाये गये हैं । मूलपाठ इस प्रकार है : 'सत्च मूल गोता पन्नत्ता तंजहा:-कासवा, गोयमा, वत्था, कोत्था, कोसिया, मंडवां, वसिट्ठा ।' 'जे कासवा ते सत्त विहा पनसा तंजहाः–ते कासवा, ते सण्डेला, ते गोल्ला, ते वाला, ते मुंजतिणो, ते पव्वपेच्छतिणो, ते वरिसकराहा । जे गोयमा ते सच विहा पन्नता तंजहा:-ते गोयमा, ते गग्गा, ते भारदा, ते अङ्गिरसा, ते सकराभा, ते भक्खराभा, ते उदगत्ताभा। ___ जे वत्था ते सत्त विहा पन्नत्ता तंजहा:-ते वत्था, ते अग्गेया, ते मित्तिया, ते सामिलिणो, ते सेलयया, ते अडिसेणा, ते वीयकएहा। जे कुत्था ते सत्त विहा पनचा तंजहा:-ते कुत्था, ते मुग्गलायणा, ते पिंगलायणा, ते कीडीणा, ते मण्डलिणो, ते हारिया, ते सोमया । __जे कोसिया ते सत्त विहा पन्नत्ता तंजहा:-ते कोसिया, ते कच्चायणा, ते सालंकायणा, ते गोलीकायणा, ते परिककायणा, अगिचा, ते लोहिच्चा । जे मण्डवा ते सत्त विहा पत्रचा तंजहा:-ते मण्डवा, ते अरिट्ठा, ते समुचा, ते तेला, ते एलावच्चा, ते कंडिल्ला, ते क्खायणा। जे वासिट्ठा ते सत्त विहा पन्नत्ता तंजहा:-ते वासिट्ठा, ते उंजायणा, ते जारुकण्हा, ते वग्यावच्चा, ते कोडिन्ना, ते सएिण. ते पारासरा आर्थात मल गोत्र सात है। काश्यप, गोतम, वत्स, कत्स, कौशिक, मण्डप और वाशिष्ठ । काश्यप के सात भेद हैं:-काश्यप, साण्डिन्य, गोल, वाल, मुञ्ज, पर्वत, वरिसकृष्ण । गौतम गोत्र के सात भेद हैं:-गौतम, गर्ग, भारद्वाज, अंगीरस, सरकराम, भाष्कराभ, उदनाम । वत्स गोत्र के सात भेद हैं:-वत्स, अंगीय, मित्तिय, सामलिण, सेलवय, अस्थिसेन, वायुकृष्ण । कुत्स के सात भेद हैं:-कुत्स, मोदगलायन, पिंगतण, कोडिन्न, मण्डलिक, हारित, सोमक । कौशिक के सात भेद हैं:-कौशिक, कात्यायन, सालंकायन, गोलिकायन, परिकंकायन, अगत्या, लोहित्य। मण्डप गोत्र के सात भेद हैं:-मण्डप, आरिष्ठ, संमुत, भेला, ऐलापत्य, कंतेल, खामण । वाशिष्ठ गोत्र के सात भेद हैं:-वाशिष्ठ, उंजायन, जारुकृष्ण, व्याघ्रापत्या, कोडिन्य, सत्ति, पारासर । ७. गोत्राणि तथा विधौ कैक पुरुष प्रभवा मनुष्यसंताना उत्तर गोत्रा पेक्षया मुलभूतानि आदि भूतानि गोत्राणि मूलगोत्राणि । गोतमस्यापत्यानि गौतमाः वत्सस्यापत्यानि वत्साः वशिष्ठस्यापत्यानि वाशिष्ठाः (स्थानाङ्गटीका
SR No.007259
Book TitlePragvat Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherPragvat Itihas Prakashak Samiti
Publication Year1953
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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