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:: प्राग्वाट-इतिहास::
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[तृतीय
शाहजादा गजनीखाँ ने रुपया इस प्रतिज्ञा पर उधार लिया था कि वह जब माँडवगढ़ का बादशाह बनेगा, सं० थरणा का रुपया पुनः लौटा देगा । सं० धरणा के आग्रह पर शाहजादा गजनीखाँ कुछ दिनों के लिए नांदिया में ही ठहरा रहा । इन्हीं दिनों में मांडवगढ़ से कुछ यवनसामंत शाहजादे को ढूढते २ नांदिया में आ पहुँचे और उन्होंने शाहजादा से मांडवगढ़ चलने के लिये आग्रह किया। सं० धरणा ने शाहजादा गजनीखाँ को समझा बुझाकर माँडवगढ़ जाने के लिये प्रसन्न कर लिया और शाहजादा अपने साथियों सहित माँडवगढ़ अपने पिता के पास में लौट गया । बादशाह हुसंगशाह ने जब यह सुना कि सं० धरणा ने उसके पुत्र गजनीखाँ का बड़ा सत्कार किया और उसको समझा कर पुनः मांडवगढ़ जाने के लिये प्रसन्न किया वह अत्यन्त ही प्रसन्न हुआ
और सं० धरणा को माँडवगढ़ बुलाने का विचार करने लगा। इतने में वह अकस्मात बीमार पड़ गया और सं० धरणा को नहीं बुला सका। . मांडवगढ़ का बादशाह हुसंगशाह कुछ ही समय पश्चात् वि० सं० १४९१ ई. सन् १४३४ में मर गया और शाहजादा गजनीखाँ बादशाह बना * । सं० धरणा को नांदिया ग्राम से उसने मानपूर्वक निमन्त्रित करके बुलगजनीखों का बादशाह बनना वाया और तीन लक्ष के स्थान पर ६ लक्ष मुद्रायें देकर अपना ऋण चुकाया तथा सं० और मांडवगढ़ में धरणाशाह धरणा को राजसभा में ऊच्च पद प्रदान किया । सं० धरणा पर बादशाह गजनीखाँ की को निमंत्रण और फिर कारा- दिनोंदिन प्रीति अधिकाधिक बढ़ने लगी। यह देखकर मांडवगढ के अमीर और उमराव कार का दंड तथा चौरासी ज्ञातिके एक लक्ष सिक्के देकर
" सं० धरणा से ईर्ष्या करने लगे । सं० धरणा इन सब की परवाह करने वाला व्यक्ति धरणाका छूटना और नादिया नहीं था । परन्तु कलह बढ़ता देखकर उसने मांडवगढ का त्याग करके नांदिया आना ग्राम को लौटना उचित समझा; परन्तु बादशाह ने सं० धरणा को नांदिया लौटने की आज्ञा प्रदान नहीं की । सं० धरणा बड़ा ही धर्मात्मा एवं जिनेश्वर-भक्त था । उसने शत्रुजयतीर्थ की संघयात्रा करने का विचार किया और बादशाह की आज्ञा लेकर संघयात्रा की तैयारी करने लगा। इस पर सं० धरणा के दुश्मनों को बादशाह को बहकाने का अवसर हाथ लग गया । उन्होंने बादशाह से कहा कि सं० धरणा संघ-यात्रा का बहाना करके नांदिया लौटना चाहता है तथा मांडवगढ़ में अर्जित विपुल सम्पत्ति को भी साथ ले जाना चाहता है । बादशाह गजनीखाँ बड़ा ही दुर्व्यसनी और व्यभिचारी था और वैसा ही कानों का भी अत्यधिक कच्चा था । अतः उसके दरबार में नित नये षड़यन्त्र बनते रहते थे और राजतन्त्र बिगड़ने लग गया था। सं० धरणा के दुश्मनों की यह चाल सफल हो गई और बादशाह ने तुरन्त ही सं० धरणा को कैद में डाल दिया। सं० धरणा के कारागार के दण्ड को श्रवण करके मांडवगढ़ के अति समृद्ध एवं प्रभावशाली श्रीसंघ में अग्नि लग गई ।
बाली ग्राम की पौषधशाला के कुलगुरु भट्टारकमियाचन्द्रजी के पास में वि०सं० १९२५ में पुनर्लिखित सं० धरणाशाह के वंशजों की एक लंबी ख्यातप्रति है । उसमें सं० कुरपाल के तीन पुत्रों का होना लिखा है। सब से बड़ा पुत्र समर्थमल था। समर्थमल की स्त्री का नाम सुहादेवी था और सुहादेवी का सुजा नामक पुत्र हुआ था। आगे समर्थमल का वंश नहीं चला। हो सकता है सुजा बालवय में अथवा निम्सन्तान मर गया हो और राणकपुर-धरणविहार-त्रैलोक्यदीपक-मन्दिर की प्रतिष्ठा के शुभावसर तक इनमें से कोई जीवितनहीं रहा हो । इसी ख्यात में सं० धरणा का अपर नाम धर्मा भी लिखा है तथा सं० धरणा की द्वितीया स्त्री चन्द्रादेवी नामा और थी, यह भी लिखा है । वह भी प्रतिष्ठोत्सव तक सम्भव है निस्संतान मर गई हो ।
*History of Mediaeval India by Iswari Prasad P. 388