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खण्ड ] :: न्यायोपार्जित द्रव्य से मंदिरतीर्थादि में निर्माण-जीर्णोद्धार कराने वाले प्रान्ना० सद्गृहस्थ-संरत्ना-धरणा:: [२६३
यशस्वी था । श्रे० भावठ के गुणवान्, पवित्रात्मा, पुण्यकर्ता, सत्कर्मरता लींवा नामक पुत्र था । श्रे० लींवा की स्त्री का नाम नयणादेवी था। जैसा श्रे० लींचा गुणवान्, सज्जन एवं धर्मात्मा श्रावक था, श्राविका नयणादेवी भी वैसी ही गुणवती, दयामती एवं धर्मपरायणा सत्ती थी। गुणवती नयणादेवी के लक्ष्मण और हाजा नामक पुत्र हुये थे । श्रे० लक्ष्मण गुरुजनों का परम भक्त और जिनेश्वरदेव का परमोपासक था । श्रे० हाजा भी अति उदार और दीनदयालु पुरुष था।
जैसा ऊपर लिखा जा चुका है दोनों भ्राता बड़े ही पुण्यात्मा थे। इन्होंने अजाहरी, सालेर आदि ग्रामों में नवीन जिनालय बनवाये थे। ये ग्राम नांदियाग्राम के आस-पास में ही थोड़े २ अंतर पर हैं । वि० सं० १४६५ में दोनों भ्राताओं के पुण्यकार्य पिंडरवाटक में और अनेक अन्य ग्रामों में भिन्न २ वर्षों में जिनालयों का जीर्णोद्धार और श्री शत्रुञ्जयमहातीर्थ करवाया, पदस्थापनायें, विबस्थापनायें करवाई, सत्रागार (दानशाला) खुलवाये । की संघयात्रा
अनेक अवसरों पर दीन, हीन, निर्धन परिवारों की अर्थ एवं वस्त्र, अन्न से सहायतायें की । अनेक शुभाअवसरों एवं धर्मपर्यों के ऊपर संघ-भक्तियाँ करके भारी कीर्ति एवं पुण्यों का उपार्जन किया । इन्हीं दिव्य गुणों के कारण सिरोही के राजा, मेदपाट के प्रतापी महाराणा इनका अत्यधिक मान करते थे।
एक वर्ष धरणा ने शत्रुश्चयमहातीर्थ की संघयात्रा करने का विचार किया। उन दिनों यात्रा करना बड़ा कष्टसाध्य था। मार्ग में चोर, डाकुओं का भय रहता था। इसके अतिरिक्त भारत के राजा एवं बादशाहों में द्वंद्वता बरावर चलती रहती थी। और इस कारण एक राजा के राज्य में रहने वालों को दूसरे राजा अथवा बादशाह के राज्य में अथवा में से होकर जाने की स्वतन्त्रता नहीं थी। शत्रश्चयतीर्थ गूर्जरभूमि में है और उन दिनों गूर्जरबादशाह अहम्मदशाह था, जिसने अहमदाबाद की नींव डाल कर अहमदाबाद को ही अपनी राजधानी बनाया था । अहम्मदशाह के दरबार में सं० गुणराज नामक प्रतिष्ठित व्यक्ति का बड़ा मान था । सं० धरणा ने सं० गुणराज के साथ में, जिसने बादशाह अहम्मदशाह से फरमाण (आज्ञा) प्राप्त किया है पुष्कल द्रव्य व्यय करके श्री शत्रुश्चयमहातीर्थादि की महाडंबर और दिव्य जिनालयों से विभूषित सकुशल संघयात्रा की। इस यात्रा के शुभावसर पर संघवी धरणाशाह ने, जिसकी आयु ३०-३२ वर्ष के लगभग में होगी श्री शत्रुञ्जयतीर्थ पर भगवान् आदिनाथ के प्रमुख जिनालय में श्रीमद् सोमसुन्दरसूरि से संघ-समारोह के समक्ष अपनी पतिव्रता स्त्री धारलदेवी के साथ में शीलव्रत पालन करने की प्रतिज्ञा ग्रहण की । युवावय में समृद्ध एवं वैभवपति इस प्रकार की प्रतिज्ञा लेने वाले इतिहास के पृष्ठों में बहुत ही कम पाये गये हैं । धन्य है ऐसे महापुरुषों को, जिनके उज्ज्वल चरित्रों पर ही जैनधर्म का प्रासाद आधारित हैं ।
मांडवगढ़ के बादशाह हुसंगशाह का शाहजादा गजनीखाँ अपने पिता से रुष्ट होकर मांडवगढ़ छोड़कर निकल पड़ा था और वह अपने साथियों सहित चलता हुआ आकर नांदिया ग्राम में ठहरा । यहाँ आने तक उसके मांडवगढ के शाहजादा पास में द्रव्य भी कम हो गया था और व्यय के लिये पैसा नहीं रहने पर वह बड़ा गजनीखों को तीन लक्ष दुःखी हो गया था। जब उसने नांदिया में सं० धरणा की श्रीमंतपन एवं उदारता की रुपयों का ऋण देना प्रशंसा सुनी, वह सं० धरणा से मिला और उससे तीन लक्ष रुपये उधार देने की याचना की । सं० धरणा तो बड़ा उदार था ही, उसने तुरन्त शाहजादा गजनीखाँ को तीन लक्ष रुपया उधार दे दिया।