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खण्ड न्यायोपार्जित द्रव्य से मंदिरतीर्थादि में निर्माण- जीर्णोद्धार करने वाले प्रा०ज्ञा० सद्गृहस्थ-सं० रत्ना धरणा : [ २६५
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श्रीसंघ ने सं० धरणा को कारागार से मुक्त कराने के लिये भरसक यत्न किये, परन्तु दुर्व्यसनी बादशाह गजनीखाँ ने कोई ध्यान नहीं दिया । बादशाह गजनीखाँ ने कुछ ही समय में अपने प्रतापी पिता हुसंगशाह की सारी सम्पत्तिको विषयभोग में खर्च कर डाला और पैसे २ के लिये तरसने लगा। राजकोष एक दम खाली हो गया । बादशाह गजनीखाँ को जब द्रव्य-प्राप्ति का कोई साधन नहीं दिखाई दिया तो उसने सं० धरणा को चौरासी ज्ञाति के एक लक्ष सिक्के लेकर छोड़ना स्वीकृत किया । अन्त सं० धरणा चौरासी ज्ञाति के एक लक्ष रुपये देकर कारागार से मुक्त हुआ और अपने ग्राम नांदिया की ओर प्रस्थान करने की तैयारी करने लगा | उन्हीं दिनों मांडवगढ़ की राजसभा में एक बहुत बड़ा षड़यन्त्र रचा गया । मुहम्मद खिलजी नामक एक प्रसिद्ध एवं बुद्धिमान् व्यक्ति बादशाह का प्रधान मन्त्री था । वह बड़ा ही बहादुर और तेजस्वी था । बादशाह गजनीखाँ की प्रधान के आगे कुछ भी नहीं चलती थी । गजनीखाँ को सिंहासनारूढ़ हुये पूरे दो वर्ष भी नहीं हो पाये थे कि राजकर्मचारी, सामन्त, अमीर और प्रजा उसके दुर्गुणों से तंग आ गई और सर्व उसके राज्य का अन्त चाहने लगे । अन्त में वि० सं० १४६३ ई० सन् १४३६ में मुहम्मद खिलजी ने बादशाह गजनीखाँ को कैद करके अपने को मांडवगढ़ का बादशाह घोषित कर दिया । राजसभा में जब यह घटना चल रही थी सं० धरणा मांडवगढ़ से चुपचाप निकल पड़ा और अपने ग्राम नांदिया में आ गया ।
नांदिया सिरोही - राज्य का ग्राम था और उन दिनों सिरोही के राजा महाराव सेसमल थे ।१ महाराव सेसमल प्रतापी थे और उन्होंने आस-पास के प्रदेश को जीतकर अपना राज्य अत्यधिक बढ़ा लिया था । सेसमल बड़े सिरोही के महाराव का स्वाभिमानी राजा थे । सं० धरणा सिरोही - राज्य का अति प्रतिष्ठित पुरुष था । सं० प्रकोप और सं० धरणा धरणा का मांडवगढ़ में जाकर कैद होना उन्हें बहुत अखरा और उसमें उनको अपनी का मालगढ़ में बसना
मान-हानि का अनुभव हुआ । महाराव सेसमल ऐसा मानते थे कि अगर सं० धरणा शाहजादा को रुपया उधार नहीं देता तो सं० धरणा कभी भी मांडवगढ़ में जाकर कैद नहीं होता। इस प्रकार सं० धरणा को उसके खुद के कैदी बनने का कारण महाराव सेसमल सं० धरणा को ही समझते थे और उसको भारी दण्ड देने पर तुले हुए बैठे थे । सं० धरणा को यह ज्ञात हो गया कि महाराव सेसमल उस पर अत्यधिक कुपित हुये बैठे हैं, वह नांदिया ग्राम को त्याग कर सपरिवार मालगढ़ नामक ग्राम में, जो मेदपाट - प्रदेश के अन्तर्गत था बसा । महाराणा कुम्भा उन दिनों प्रसिद्ध दुर्ग कुम्भलमेर में ही अधिक रहते थे। मालगढ़ और कुम्भलगढ़ एक ही पर्वतश्रेणी कुछ ही कोसों के अन्तर पर आ गये हैं। जब महाराणा कुम्भा ने यह सुना कि सं० धरणा मालगढ़ में सपरिवार आ बसे हैं, उन्होंने अपने विश्वासपात्र सामन्तों को भेजकर मानपूर्वक सं० धरणा को राजसभा में बुलवाया और सं० धरणा का अच्छा मान किया तथा सं० धरणा को अपने विश्वासपात्र व्यक्तियों में स्थान दिया |२
१. सि० इति० पृ० १६४-६५
२. बाली ( मरुधर ) के कुलगुरु भट्टारक मियाचन्द्रजी की पौषधशाला की वि० सं० १६२५ में पुनर्लिखित सं० धरणा के वंशजों की ख्यातप्रति के आधार पर ।