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खण्ड ] :: न्यायोपार्जित द्रव्य से मंदिरतीर्थादि में निर्माण - जीर्णोद्धार कराने वाले प्रा०ज्ञा० सद्गृहस्थ - श्रे० हीसा, धर्मा :: [ २६१
श्रेष्ठ हीसा और धर्मा वि० सं० १५०३
विक्रम की पन्द्रहवीं शताब्दी में प्राग्वाटज्ञातीय प्रसिद्ध श्रीमंत देवपाल नामक सुश्रावक देवकुलपट्टक में रहता था । उसके सुहड़सिंह नामक पुत्र था, जिसकी स्त्री का नाम सुहड़ादेवी थी । सुहड़ादेवी के पीछड़ लिया (?) नामक ज्येष्ठ पुत्र था और छोटा पुत्र कर्ण था । कर्ण की स्त्री का नाम चनूदेवी था । चनूदेवी बड़ी सौभाग्यवती एवं गुणगर्भा स्त्री थी । वह जैसी गुणवती थी, वैसी ही पुत्ररत्नवती भी थी । उसके सौभाग्य से सात पुत्र शाह धांधा, हेमा, धर्मा, कर्मा, हीरा, काला और हीसा नामक थे ।
उक्त पुत्रों में से श्रे० हीसा का विवाह लाखू नामक गुणवती कन्या से हुआ था । लाखूदेवी के आमदत्त आदि पुत्र थे । ० हीसा ने वि० सं० १४६४ फाल्गुन कृ० ५ को तपागच्छाधिपति श्रीमद् सोमसुन्दरसूरि के कर-कमलों से अतिसुन्दर श्री सत्तावीसकायोत्सर्गिक जिनप्रतिमापट्टिका को बड़ी धूमधाम एवं महोत्सवपूर्वक समस्त परिवार सहित प्रतिष्ठित करवाई । १
उक्त पुत्रों में से तृतीय पुत्र धर्मा का विवाह धर्मिणी नामा कन्या से हुआ था । धर्मिणी की कुक्षी से सहसा, सालिग, सहजा, सोना और साजण नामक पाँच पुत्र हुये थे । श्रे० धर्मा ने वि० सं० १५०३ आषाढ़ शु० ७ को तपा० श्री जयचन्द्रसूरि के कर-कमलों से महोत्सवपूर्वक ६६ (छिन्नवे) जिनप्रतिमापट्टिका समस्त परिवारसहित प्रतिष्ठित करवाई थी ।
इसी वि० सं० १५०३ आषाढ़ शु० ७ के शुभावसर पर श्री जयचन्द्रसूरि के कर-कमलों से प्राग्वाटज्ञातीय श्रे० आका की स्त्रियाँ जसलदेवी और चांपादेवी नामा के पुत्र शा० देल्हा, जेठा, सोना और खीमा ने भी श्री चौवीशीजिनप्रतिमापट्ट करवा कर प्रतिष्ठित करवाया । २
धांधा
हमा
पीछड़लिया
वंश-वृक्ष देवपाल
सुहड़सिंह [सुहड़ादेवी]
धर्मा [धर्मिणीदेवी] कर्मा
सहसा
सालिग
सोना
सहजा १- जै० ले० सं० भा० २ ले १६६८, १६६६ ।
कर्ण [देव]
हीरा
काला
साजण
२- जै० ले० सं० भा० २ ले० १६७३
हीसा [लाखूदेवी]
आमदत्त